देश की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) पर अमेरिका में वीजा फ्रॉड के आरोप में जांच हो सकती है। अमेरिका में Donald Trump की अगुवाई वाली नई सरकार वीजा को लेकर पॉलिसी में बदलाव कर सकती है। भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों के लिए अमेरिका सबसे बड़ा मार्केट है।
एक मीडिया
रिपोर्ट के अनुसार, TCS के पूर्व वर्कर Anil Kini ने आरोप लगाया था कि कंपनी अमेरिका में अधिक वर्कर्स को भेजने के लिए वीजा की जरूरत को लेकर गलत जानकारी देती है। Kini ने कहा था कि TCS लॉटरी सिस्टम के जरिए अधिक वीजा हासिल करने के लिए अपनी पोजिशंस से अधिक पेटिशंस दाखिल करती है। इसके बाद
कंपनी अपने वर्कर्स को न्यूनतम वेतन से कम का भुगतान करती है, जो अमेरिका के वीजा कानूनों का उल्लंघन है। इस वजह से अमेरिकी सरकार को यह कम पेरोल टैक्स का भुगतान करती है। TCS पर L-1 और B-1 वीजा का भी इस्तेमाल करने का आरोप है। ये वीजा हासिल करने आसान होते हैं। इन वीजा का इस्तेमाल उन वर्कर्स के लिए किया जाता है जिन्हें H-1B वीजा मिलना मुश्किल होता है।
Kini ने अपनी शिकायत में बताया था कि ऐसा करने के लिए कंपनी वीजा की एप्लिकेशंस में अपने वर्कर्स के जॉब टाइटल और कार्य से जुड़ी जिम्मेदारियों की गलत जानकारी देती है। TCS के खिलाफ अपने कानूनी मामले के खारिज होने के बाद Kini ने अपील दाखिल की थी। इसमें बताया गया था कि 2017 में उन्होंने कंपनी के चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर को वीजा से जुड़े फ्रॉड के तरीकों के बारे में व्हिसलब्लोअर रिपोर्ट दी थी। उन्होंने कहा था कि इसके बाद तीन फॉलो-अप रिपोर्ट भी जमा की गई थी। Kini ने आरोप लगाया था कि कंपनी ने इसके बाद उनके खिलाफ कार्रवाई करते हुए वेतन में कटौती करने के साथ ही उनका प्रमोशन रोक दिया था और उन्हें बर्खास्त किया गया था।
न्यूज एजेंसी Bloomberg को हाल ही में Kini ने बताया था कि उनके सीनियर्स ने उन्हें कंपनी के ऑर्गनाइजेशनल चार्ट्स में झूठी जानकारी देने का ऑर्डर दिया था जिससे वे अपनी वास्तविक पोजिशंस से अधिक जिम्मेदारी के साथ दिखें। यह वीजा को लेकर किसी स्क्रूटनी से बचने के लिए किया गया था। इससे पहले भी कुछ सॉफ्टवेयर कंपनियों पर वीजा को लेकर गलत जानकारी देने के आरोप लग चुके हैं।