पिछले कुछ वर्षों में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EV) की बिक्री तेजी से बढ़ी है। EV से पॉल्यूशन को कम करने में आसानी होती है और यह क्रूड ऑयल के इम्पोर्ट को घटाने का भी बड़ा जरिया बन सकता है। हालांकि, इस सेगमेंट के साथ कुछ समस्याएं भी हैं। केंद्र सरकार ने कहा है कि अगर EV में इस्तेमाल होने वाली लिथियम-आयन बैटरी के वेस्ट की डंपिंग से होने वाले खतरों पर किसी रिपोर्ट पर वह सख्त कदम उठाएगी।
रोड ट्रांसपोर्ट एंड हाइवेज मिनिस्टर Nitin Gadkari ने राज्यसभा में कहा कि अगर देश में
EV मेकर्स लिथियम-आयन बैटरी के वेस्ट की डंपिंग करते हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। कांग्रेस की सांसद रंजीत रंजन ने लिथियम-आयन बैटरी के वेस्ट की डंपिंग और इसकी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स में वर्कर्स को होने वाले नुकसान का मुद्दा राज्यसभा में उठाया था। उन्होंने बताया था कि एक रिसर्च रिपोर्ट में इन बैट्रीज की मैन्युफैक्चरिंग से जुड़े वर्कर्स के स्वास्थ्य को नुकसान के बारे में जानकारी दी गई है। इस रिपोर्ट में पुरानी लिथियम-आयन बैट्रीज की डंपिंग से पर्यावरण खराब होने की भी जानकारी है।
इसके उत्तर में गडकरी ने कहा, "हमारे पास इस तरह की कोई रिपोर्ट या निष्कर्ष नहीं है। अगर इस तरह का कोई निष्कर्ष हमारे सामने आता है तो हम उस पर विचार करेंगे। हम इस मुद्दे को गंभीरता से लेंगे और लिथियन-आयन बैटरी वेस्ट की रिसाइक्लिंग का समाधान निकालेंगे।" उन्होंने कहा कि यह भविष्य की टेक्नोलॉजी है और सरकार इसके लिए योजना बना रही है। इसके साथ ही गडकरी ने बताया कि अगले पांच वर्षों में
इलेक्ट्रिक कारों, बसों और ट्रकों के एक्सपोर्ट में भारत एक अग्रणी देश बन जाएगा।
उन्होंने बताया कि फाइनेंस मिनिस्टर ने अपने बजट भाषण में सर्कुलर इकोनॉमी का जिक्र किया था और इसके तहत पुरानी कारों की स्क्रैपिंग, रबड़ की बिटुमिन के साथ रिसाइक्लिंग और सड़कें बनाने में प्लास्टिक के इस्तेमाल जैसे कदम उठाए जा रहे हैं। इस वर्ष के इकोनॉमिक सर्वे में अनुमान दिया गया था कि देश में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स का मार्केट 2030 तक बढ़कर एक करोड़ यूनिट्स सालाना का हो सकता है। इससे लगभग पांच करोड़ डायरेक्ट और इनडायरेक्ट जॉब्स मिलने की संभावना है। Tesla जैसे बड़े EV मेकर्स देश में अपने व्हीकल्स की मैन्युफैक्चरिंग करने की योजना बना रहे हैं।