अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (Nasa) ने अपने मून मिशन को रफ्तार देना शुरू कर दिया है। आर्टिमिस प्रोग्राम के तहत वह एक बार फिर से इंसान को चांद पर उतारना चाहती है, लेकिन इस बार तैयारी बड़ी है। नासा चंद्रमा पर अपने एस्ट्रोनॉट्स के लिए बेस तैयार करने की योजना बना रही है, ताकि भविष्य में वहां से ही मंगल ग्रह तक पहुंचने में सफलता पाई जा सके। नासा की तरह ही चीन भी मून मिशन पर आगे बढ़ रहा है, जिसमें उसे रूस का सहयोग मिल रहा है। चीन की चुनौती ने नासा को अपना मिशन और तेज करने के लिए मजबूर किया है। अच्छी बात है कि अमेरिकी स्पेस एजेंसी ने चंद्रमा पर अपना बेस बनाने के लिए एक बेहतर जगह की तलाश पूरी कर ली है। हालांकि यह कोई सतही इलाका नहीं, एक गड्ढा है।
दरअसल, नासा के लूनार रिकोनिसेंस ऑर्बिटर (LRO) का डेटा बताता है कि चंद्रमा पर गड्ढों में सबसे स्थिर तापमान होता है और यह चंद्रमा पर बेस के लिए एकदम सही जगह हो सकती है। यानी नासा के मून मिशन के लिए चंद्रमा पर मौजूद गड्ढे सबसे बेहतर स्पॉट हो सकते हैं, जहां तापमान स्थिर रहता है।
लूनार रिकोनिसेंस ऑर्बिटर ने जिस गड्ढे का पता लगाया है, वह चंद्रमा के ‘मारे ट्रैंक्विलिटैटिस' इलाके के नाम से जाना जाता है। यह गड्ढा 100 मीटर गहरा और फुटबॉल के मैदान जितना चौड़ा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि गड्ढे के ओवरहैंग की वजह से यहां छाया रहती है, जिससे लगातार वहां 17 डिग्री सेल्सियस तापमान बना रहता है।
यह जानकारी
जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुई है। बताया गया है कि इन गड्ढों पर चंद्रमा की सतह के विपरीत हर समय लगभग 17 डिग्री सेल्सियस तापमान रहता है। चंद्रमा की सतह की बात करें, तो वहां दिन में तापमान 127 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है और रात में यह -173 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। ऐसे में चंद्रमा की सतह पर बेस बनाने से मिशन असंभव हो जाएगा, जबकि गड्ढों में बेस बनाना कारगर हो सकता है, क्योंकि वहां तापमान 17 डिग्री सेल्सियस पर स्थिर रहेगा।
खास बात यह है कि इन गड्ढों को साल 2009 में ही खोज लिया गया था। तब माना गया था कि ये गड्ढे वहां मौजूद गुफाओं तक ले जाते होंगे। वैज्ञानिकों का यह भी मानना था कि गड्ढे अंतरिक्ष यात्रियों को ब्रह्मांडीय किरणों, सौर रेडिएशन और छोटे उल्कापिंडों से बचाने में मददगार हो सकते हैं।