पिछले कुछ वर्षों में चंद्रमा के बारे में कुछ नए तथ्य सामने आए हैं। एक नई स्टडी में यह पता चला है कि धरती की तुलना में चंद्रमा पर समय अधिक तेजी से चलता है। इसका कारण चंद्रमा पर गुरुत्वाकर्षण की शक्ति धरती से कमजोर होना है। चंद्रमा पर घड़ी की चाल धरती की तुलना में लगभग 56 माइक्रोसेकेंड्स प्रति अर्थ डे या 0.00056 सेकेंड्स तेज होती है।
Astronomical Journal में प्रकाशित यह
स्टडी Albert Einstein की जनरल रिलेटिविटी थ्योरी पर आधारित है। इस स्टडी से जुड़े नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्टैंडर्ड्स एंड टेक्नोलॉजी (NIST) के थ्योरेटिल फिजिस्ट, Bijunath Patla ने बताया, "अगर हम चंद्रमा पर हैं तो धरती की तुलना में घड़ी अलग तरीके से चलती है।" इस स्टडी में Patla और उनके सहयोगी Neil Ashby ने आइंसटीन के कार्य का इस्तेमाल कर संख्या की गणना के लिए पिछले विश्लेषणों में सुधार किया है। जनरल रिलेटिविटी की थ्योरी में बताया गया है कि एक सामान्य घड़ी की दर पर उसके स्थान और उससे जुड़ी गति पर गुरुत्वाकर्षण की क्षमता से प्रभावित होती है।
इस स्टडी के अनुसार, "धरती से दूर घड़ियां तेजी से चलती हैं और एक समान गति वाली घड़ियां स्थिर घड़ियों की तुलना में धीमी होती हैं।" हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) को चंद्रयान-4 के लिए केंद्र सरकार से स्वीकृति मिली थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता वाले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नए मून मिशन को हरी झंडी दी है। इस मिशन में चंद्रमा पर एक भारतीय की लैंडिंग और धरती पर सुरक्षित वापसी के लिए जरूरी तकनीकी क्षमताओं का आकलन किया जाएगा। पिछले वर्ष
ISRO ने चंद्रयान-3 मिशन को सफलता से पूरा किया था। प्रधानमंत्री मोदी ने बताया था कि चंद्रयान-4 मिशन से स्पेस टेक्नोलॉजी में भारत की आत्मनिर्भता बढ़ेगी और इनोवेशन को बढ़ावा मिलेगा। इस मिशन में चंद्रमा से सैम्प्ल एकत्र कर उसका विश्लेषण किया जाएगा।
चंद्रयान-4 की वजन क्षमता ISRO के पास मौजूद सबसे पावरफुल रॉकेट से ज्यादा हो सकती है। इस वजह से मिशन को दो हिस्सों में लॉन्च करने की तैयारी है। यह दुनिया का पहला ऐसा स्पेस मिशन होगा, जिसे दो भागों में लॉन्च किया जाएगा और स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष में जोड़ा जाएगा। इस मिशन की सफलता ISRO के लिए एक बड़ी कामयाबी होगी। चंद्रयान-4 मिशन का उद्देश्य चंद्रमा से सैंपल लेकर वापस आना है। दुनिया के तीन देश- अमेरिका, रूस और चीन ही चंद्रमा से सैंपल ला सके हैं। अमेरिका और भारत की अगले वर्ष के अंत तक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर एक भारतीय एस्ट्रॉनॉट को भी भेजने की योजना है।
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