देश के टियर दो और तीन शहरों में ई-कॉमर्स की तेजी से ग्रोथ की वजह से 2030 तक ऑनलाइन रिटेल सेक्टर बढ़कर 325 अरब डॉलर पर पहुंच सकता है। पिछले वर्ष यह मार्केट 70 अरब डॉलर का था।पिछले वर्ष इस मार्केट में कुल ऑर्डर्स में से टियर दो और तीन शहरों की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत से अधिक की थी।
Deloitte की
रिपोर्ट में बताया गया है कि ऑनलाइन रिटेल की पहुंच तेजी से बढ़ने का अनुमान है और यह अगले दशक में ऑफलाइन रिटेल को 2.5 गुना तक पीछे छोड़ देगी। इस रिपोर्ट के अनुसार, "ऑनलाइन रिटेल में बढ़ोतरी के पीछे विभिन्न कारण हैं। इसमें ऑर्डर देने और रिटर्न की सुविधा के साथ ही 19,000 से अधिक पिन कोड तक लॉजिस्टिक्स इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद है।" देश में 22 करोड़ से अधिक ऑनलाइन खरीदारी करने वाले कस्टमर्स हैं और ई-कॉमर्स की ग्रोथ में इनकी बड़ी भूमिका होगी। इस सेक्टर में प्राइवेट इक्विटी और वेंचर कैपिटल फर्मों ने काफी इनवेस्टमेंट किया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले पांच वर्षों में यह इनवेस्टमेंट लगभग 23 अरब डॉलर का रहा है।
ऑनलाइन रिटेलर्स के खिलाफ कस्टमर्स के साथ धोखा करने के आरोप भी लगते रहे हैं। हाल ही में केंद्र सरकार ने कहा था कि वह इन रिटेल प्लेटफॉर्म्स पर फ्लैश सेल्स से चिंतित नहीं है लेकिन वह कस्टमर्स के लिए विकल्पों पर बंदिशें लगाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले तरीकों और गलत प्राइसिंग के खिलाफ है।
कॉमर्स एंड इंडस्ट्री मिनिस्टर, Piyush Goyal ने कहा था कि
ई-कॉमर्स साइट्स पर फ्लैश सेल्स का फायदा उठाने के लिए खरीदारी करने वाले कस्टमर्स को अक्सर ऐसी एंटीटिज की ओर डायवर्ट किया जाता है जिन्हें ऑनलाइन रिटेलर की ओर से बढ़ावा दिया जाता है। यह धोखाधड़ी है और फॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट (FDI) रूल्स के खिलाफ है। उनका कहना था, "अगर कोई डिस्काउंट देना चाहता है तो मुझे शिकायत क्यों करनी चाहिए। कस्टमर्स को अच्छा डील मिल रही है तो हमें कोई समस्या नहीं है।" कंज्यूमर मिनिस्ट्री की जिम्मेदारी भी संभालने वाले गोयल ने कहा कि समस्या दो कारणों से है। पहला गुड्स की डंपिंग के जरिए भेदभाव वाली प्राइसिंग और दूसरा कस्टमर्स के विकल्पों को सीमित करना। चीन का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा था कि बहुत कम प्राइसेज पर गुड्स की लंबी अवधि तक डंपिंग से देश में मैन्युफैक्चरिंग को नुकसान होता है और कस्टमर्स को अधिक प्राइसेज पर गुड्स खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
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