धरती पर कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा लगातार बढ़ रही है जिससे हमारा ग्रह गर्म होता जा रहा है। दुनियाभर के देश क्लाइमेट चेंज पर समझौते बना रहे हैं लेकिन लक्ष्य चूकता सबको दिखाई दे रहा है। 2022 तक धरती 1.26 डिग्री सेल्सियस गर्म हो चुकी है। और कहा जा रहा है कि 2030 के दशक के मध्य तक यह आंकड़ा 1.5 डिग्री सेल्सियस को पार कर चुका होगा। इतना ही नहीं, शोध तो यहां तक कह रहे हैं कि शताब्दी के खत्म होने तक धरती 2.5 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो चुकी होगी।
इतनी ज्यादा गर्मी होने से दुनिया में कई प्रजातियां और ईकोसिस्टम नष्ट हो जाएंगे। इसलिए वैज्ञानिक क्लाइमेट चेंज की हर संभव तरीके से रोकथाम करने की कोशिश कर रहे हैं। NDTV के
अनुसार, इस संबंध में वैज्ञानिक इतिहास की ओर देख रहे हैं। 1815 में तम्बोरा, इंडोनेशिया में जो
ज्वालामुखी विस्फोट हुए थे, और 1991 में फिलीपींस के पिनाटूबो में जो ज्वालामुखी फटे, उनमें एक बात समान थी। इनसे निकला धुंआ और कण वायुमंडल में ऊपर तक फैल गए। जिसने कई सालों तक सूर्य के प्रकाश को धरती पर धीमा कर दिया। अब वैज्ञानिक इसी प्रक्रिया का सहारा क्लाइमेट चेंज, या बढ़ते तापमान को रोकने के लिए लेने का विचार कर रहे हैं।
धरती सूरज की किरणों के पड़ने से ही गर्म होती है। लेकिन इसकी ये गर्मी ग्रीन हाउस गैसों के कारण वायुमंडल में ही कैद कर ली जाती है। जिससे धरती अपनी गर्मी को बाहर नहीं फेंक पाती है। लेकिन वैज्ञानिक अब ज्वालामुखी विस्फोटों के कारण सूरज के धीमा होने की प्रक्रिया को कृत्रिम तरीके से दोहराने की बात कर रहे हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि धरती पर 1 डिग्री सेल्सियस गर्मी को कम करने के लिए सूरज के प्रकाश को 1% धीमा करने की जरूरत है।
यह सुनने में अजीब लग सकता है। लेकिन इंजीनियर कह रहे हैं कि यह संभव हो सकता है। इसमें ऊंचा उड़ सकने वाले जेट प्लेन इस्तेमाल होंगे जो ऊपरी वायुमंडल में ऐसे कण छोड़ेंगे जिनसे धरती पर सूरज का प्रकाश आना कुछ धीमा पड़ जाएगा।
हालांकि सूरज को धीमा करना
क्लाइमेट चेंज के प्रभाव को वापस नहीं मोड़ सकता है। क्योंकि सूरज तो दिन के समय में ही धरती को ज्यादा गर्म करता है। लेकिन ग्रीन हाउस गैसें धरती को सब जगह से, और हर समय गर्म कर रही हैं। वहीं, शोध सूरज को धीमा करने के बारे में कह रहे हैं कि यह कारगर होगा। बढ़ती गर्मी के कारण बहुत से ऐसे जीव हैं जिनका जीना मुश्किल हो जाएगा। प्रजातियां नष्ट होने लगेंगी। साथ ही मनुष्य शरीर की गर्मी बर्दाश्त करने की जो क्षमता है, तापमान अब उसके करीब पहुंचता नजर आता है। ऐसे में इंसान पर भी बड़ा खतरा ग्लोबल वॉर्मिंग के रूप में मंडरा रहा है।