क्लाइमेट चेंज के कारण मौसमी गतिविधियों में बड़ा बदलाव अब आए दिन त्रासदी की खबर लेकर आ रहा है। पिछले कुछ सालों में जलवायु में जबरदस्त बदलाव देखा जा रहा है जिसके कारण मौसम चक्र बदलने लगे हैं। बेमौसम बारिश, बाढ़, बवंडर, भूस्खलन जैसी गतिविधियां भयावह रूप ले रही हैं। धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है जिससे प्राकृतिक आपदाओं ने विकाराल रूप लेना शुरू कर दिया है। वैज्ञानिक लगातार ऐसे तरीके खोज रहे हैं जिससे क्लाइमेट चेंज को कंट्रोल किया जा सके। अब इससे जुड़ी एक चौंकाने वाली बात सामने आई है जो कहती है कि मौसम में आई ये गड़बड़ी अगले 50 हजार सालों तक रहने वाली है!
दरअसल फरवरी 2000 में जाने माने वैज्ञानिक पॉल क्रूजेन ने इंटरनेशनल जियोस्फीयर-बायोस्फीयर प्रोग्राम, मैक्सिको में बोलते हुए कई बातें कही थीं। इनमें से एक शब्द था एंथ्रोपोसीन (Anthropocene)। यह एक भूवैज्ञानिक युग बताया जा रहा है जो कि इंडस्ट्रियल अप्रोच के हद से ज्यादा बढ़ जाने के कारण धरती का रूप बदलना शुरू कर चुका है। NDTV के
अनुसार, इसके बारे में कहा गया है कि अभी जो इंडस्ट्रिएलाइजेशन चल रहा है, इसका असर हम और हमारे बाद आने वाली पीढी ही नहीं, बल्कि न जाने कितनी ही पीढियां भुगतने वाली हैं। शायद मानवता के खत्म होने के बाद भी!
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क्रूजेन ने इसके पीछे कई कारण भी बताए हैं जिनमें जंगलों का तेजी से काटा जाना, दुनियाभर में बड़ी नदियों पर बन रहे बांध, मछलियों का हद से ज्यादा दोहन, फसलों के लिए खाद का होने वाला बहुत अधिक इस्तेमाल, ग्रीन हाउस गैसों में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी जैसी कुछ चिंताजनक बातें हैं जो एंथ्रोपोसीन (Anthropocene) की शुरुआत का सबूत दे रही हैं। 20वीं शताब्दी के मध्य से लेकर 21 वीं शताब्दी तक
ग्लोबल तापमान आधे डिग्री बढ़ गया। यहां आंकड़े और भी डराने वाले हैं। 2022 तक आते आते तापमान आधे डिग्री और बढ़ चुका है। इसलिए
क्लाइमेट चेंज दुनिया की सबसे भयावह समस्याओं में से एक बन चुका है।
रिपोर्ट कहती है कि पिछले 9 साल दुनिया में सबसे ज्यादा गर्म रिकॉर्ड हुए हैं। इसके परिणाम भी सामने आ रहे हैं। हीटवेव, जंगलों की आग, बाढ़, सूखा आदि सब गवाह बन रहे हैं कि धरती का वातावरण किस कदर असंतुलित होता जा रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार एंथ्रोपोसीन (Anthropocene) अब धीरे धीरे अपने मध्य चरण ओर बढ़ रहा है।
तो क्यों बढ़ रहा है इतना तापमान? वजह ग्रीन हाउस गैसों का बढ़ना बताया जा रहा है। मनुष्य ऊर्जा के लिए अभी अधिकतर जीवश्म ईंधन पर निर्भर होकर चल रहा है। वैज्ञानिक पॉल क्रूजेन ने मैक्सिको में जब इस युग के बारे में बात की थी तब वातावरण में फैली कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 370 पार्ट्स प्रति मिलियन (370 ppm) थी। जो अब बढ़कर 420 ppm हो चुकी है। यह हर साल 2 ppm की दर से बढ़ रही है। जबकि इंडस्ट्रियल क्रांति से पहले यह 280 ppm हुआ करती थी। वैज्ञानिक कह रहे हैं कि इस बदलाव को रोकने के लिए बडा़ प्रयास करना जरूरी है। हवा और समुद्रों में घुली कार्बन डाइऑक्साइड को खत्म करना होगा। एमिशन कम से कम करना होगा। वरना नतीजे बहुत भयंकर होने वाले हैं।