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हमारी आकाशगंगा में वैज्ञानिकों को पता लगी ये भूतिया चीज! इसे न छू सकते हैं और न देख!

जिस ऑब्जर्वेटरी से इनको देखा गया है उसमें लाखों टन बर्फ लगी हुई है।

हमारी आकाशगंगा में वैज्ञानिकों को पता लगी ये भूतिया चीज! इसे न छू सकते हैं और न देख!

वैज्ञानिकों के अनुसार, मिल्की वे गैलेक्सी पहली बार फोटोन की जगह इस तरह के कणों का इस्तेमाल कर रही है।

ख़ास बातें
  • न्यूट्रिनो की एटम से टकराने की घटना बहुत दुर्लभ है
  • जब ये टकराते हैं तो फ्लैश लाइट जैसी रोशनी निकलती है
  • कणों के बारे में वैज्ञानिकों ने कहा है कि इन्हें देख पाना लगभग असंभव है
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अंतरिक्ष अनंत है और इसमें हजारों ऐसी घटनाएं हो रही हैं जिन तक विज्ञान की पहुंच नहीं है। लेकिन कुछ हद तक आधुनिक विज्ञान ब्रह्मांड को दूर तक देखने में कामयाब हो चुका है। अब वैज्ञानिकों ने एक हैरान कर देने वाली घटना का पता लगाया है। मिल्की वे गैलेक्सी यानि कि हमारी आकाशगंगा में कुछ रहस्यमी कण देखे गए हैं जो इससे पहले नहीं देखे गए थे। इन्हें भूतिया कण कहा है जो आकाशगंगा से निकल रहे हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये रेडिएक्टिव क्षय के कारण बने हैं जैसा कि परमाणु रिएक्टर में देखा जाता है, जब बहुत अधिक ऊर्जा वाले पार्टिकल अणु से टकराते हैं।  

अंतरिक्ष में दौड़ रहे इन कणों के बारे में वैज्ञानिकों ने कहा है कि इन्हें देख पाना लगभग असंभव है, क्योंकि ये भौतिक जगत के साथ मिलकर कोई क्रिया करते ही नहीं हैं। इसी कारण इन्हें भूतिया कण कहा है। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, वैज्ञानिकों ने आइसक्यूब न्यूट्रिनो ऑब्जर्वेटरी से डिटेक्टर के जरिए इनका पता लगाया है। रिपोर्ट के मुताबिक, ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी से प्रोफेसर सुबीर सरकार ने कहा कि गैलेक्सी में पहली बार ऐसे कण देखे गए हैं। मिल्की वे गैलेक्सी पहली बार फोटोन की जगह इस तरह के कणों का इस्तेमाल कर रही है। यह एक हाई एनर्जी प्रोसेस है जो हमारी आकाशगंगा को आकार दे रही है। 

न्यूट्रिनो कणों के बारे में बताते हुए कहा गया है कि ये भूतिया कण हैं जिनका कोई भार भी नहीं है। अगर है तो वह इतना कम है कि उसका पता नहीं लगाया जा सकता है। ये प्रकाश की गति से दौड़ रहे हैं। ये गैलेक्सी से गुजर जाएंगे लेकिन किसी भी वस्तु के साथ कोई भी क्रिया नहीं करेंगे। इसलिए इनको देखने के लिए एक भारी भरकम डिटेक्टर चाहिए है जो इनकी हलचल का पता लगा सके। 

जिस ऑब्जर्वेटरी से इनको देखा गया है उसमें लाखों टन बर्फ लगी हुई है। इसमें 1 क्यूबिक किलोमीटर जितनी बर्फ लगी है जिसमें 5 हजार लाइट सेंसर लगे हैं। न्यूट्रिनो की एटम से टकराने की घटना बहुत दुर्लभ है। जब ये टकराते हैं तो फ्लैश लाइट जैसी रोशनी निकलती है जिसको ये उपकरण पता लगा लेते हैं। इन्हीं की बदौलत न्यूट्रिनो को देख पाना संभव हो सकता है। गैलेक्सी में सबसे ज्यादा घनत्व इसके मध्य रेखा यानि इक्वेटर पर मौजूद है। वैज्ञानिकों ने एक दशक के आईसक्यूब डेटा को स्टडी किया है और 60 हजार न्यूट्रिनो का पता लगाया है।  

(Except for the headline, this story has not been edited by NDTV staff and is published from a press release)

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हेमन्त कुमार

हेमन्त कुमार Gadgets 360 में सीनियर सब-एडिटर हैं और विभिन्न प्रकार के ...और भी

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