मंगल ग्रह (
Mars) पर कभी पानी हुआ करता था, इस तथ्य से वैज्ञानिक वर्षों से परिचित हैं। लाल ग्रह पर अंतरिक्ष एजेंसियों द्वारा भेजे गए मिशनों से वहां गड्ढेदार चैनलों का पता चला है। इन्हें मंगल ग्रह की गली या नाली कहा जाता है। हालांकि पास से देखा जाए, तो ये घाटियां जैसी हैं। ब्राउन यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने एक
स्टडी में पाया है कि इन नालियों के निर्माण में पिघलती बर्फ के पानी ने अहम भूमिका निभाई होगी। मंगल ग्रह पर मौजूद ये नालियां, पृथ्वी पर अंटार्कटिका की सूखी घाटियों में पाई जाने वाली नालियों से मिलती-जुलती हैं। दिलचस्प तथ्य यह है कि अंटार्कटिका की घाटियों में मौजूद नालियां भी ग्लेशियरों के पानी के कारण बनी हैं।
मंगल ग्रह पर पानी कैसे पिघला होगा, यह जानने के लिए रिसर्च टीम ने एक मॉडल तैयार किया। टीम को पता चला कि मंगल ग्रह जब अपनी धुरी पर लगभग 35 डिग्री तक झुक जाता है, तो इसका वातावरण इतना घना हो जाता है कि बर्फ के पिघलने की घटनाएं कुछ समय तक हो सकती हैं।
मंगल ग्रह का अपनी धुरी पर झुकाव बदलता रहता है। अगर ग्रह 35 डिग्री तक झुक जाए, तो बर्फ को पिघलाने के लिए पर्याप्त रूप से गर्म होने लगेगा। ऐसे में मंगल ग्रह पर बर्फ के रूप में मौजूद पानी तरल रूप में वापस आ सकता है।
गौरतलब है कि मंगल ग्रह जब अपने शुरुआती दौर में था, तो वहां पानी बहा करता था। माना जाता है कि करीब 3 अरब साल पहले मंगल ग्रह का पानी खत्म हो गया। लाल ग्रह सूख गया और रेगिस्तान जैसे हालात में तब्दील हो गया।
शोध के निष्कर्षों से पता चलता है कि मंगल ग्रह पर नालियों का निर्माण कई-कई वर्षों में होता रहा। सबसे हालिया घटना 6 लाख 30 हजार साल पहले हुई होगी, ऐसा अनुमान लगाया गया है। यह स्टडी साइंस जर्नल में
पब्लिश हुई है। स्टडी पूर्व में हुई एक रिसर्च पर आधारित थी, जिसमें कई दशक पहले ही मंगल ग्रह पर नालियों की जांच शुरू कर दी गई थी।