अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (Nasa) के लिए मंगल ग्रह बहुत मायने रखता है। नासा अपने मिशनों के जरिए मंगल ग्रह (Mars) पर जीवन की संभावनाएं टटोल रही है। पृथ्वी के मुकाबले मंगल बहुत ज्यादा ठंडा और विषम परिस्थितियों वाला है। नासा की जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी (Jet Propulsion Laboratory (JPL)) ने अपने नए वीडियो में यह बताने की कोशिश की है कि मंगल ग्रह पर बर्फ और ठंड कैसी दिखाई देती है। नासा का वीडियो दिलचस्प है। इसे एनिमेशन के जरिए तैयार किया गया है।
जेपीएल के मंगल वैज्ञानिक सिल्वेन पिकेक्स इस वीडियो में कहते हैं कि पृथ्वी पर पानी की बर्फ देखने को मिलती है, लेकिन मंगल ग्रह पर इसका अंदाज थोड़ा अलग है। नासा के फीनिक्स मार्स लैंडर ने साल 2008 में आर्कटिक मार्टियन ग्राउंड को खंगाला, तो उसे सतह के नीचे पानी की बर्फ दिखाई दी। यानी जो बर्फ पृथ्वी पर सतह के ऊपर मिल जाती है, वह मंगल ग्रह पर सतह के नीचे है।
वीडियो में पिकेक्स बताते हैं कि शायद इस बर्फ का इस्तेमाल भविष्य में मंगल ग्रह पर लैंड करने वाले अंतरिक्ष यात्री कर सकते हैं। इसके अलावा, मंगल ग्रह पर ड्राई बर्फ भी है, जो कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का एक ठोस रूप है। खास बात है कि CO2 के रूप में मौजूद यह ठोस बर्फ गैस में बदल जाती है। बर्फ के अलावा मंगल ग्रह पर कई ऐसे ऑब्जेक्ट भी दिखाई देते हैं, जो पंखे से लेकर गीजर, मकड़ी आदि से मिलते-जुलते हैं। यह सब मंगल ग्रह पर मौजूद संरचनाएं हैं और देखने में खूबसूरत लगती हैं।
वीडियो बताता है कि बर्फ के क्रिस्टल भी मंगल ग्रह पर गिरते हैं। इसका पता फीनिक्स मार्स लैंडर ने ही लगाया था। लैंडर ने मंगल ग्रह के आसमान में एक लेजर लाइट फेंकी थी, जिसमें उसे बादलों से गिरते हुए पानी के बर्फ के क्रिस्टल दिखाई दिए थे। नासा का वीडियो यह बताता है कि मंगल ग्रह में कुछ जगहों पर पाला भी पड़ता है।
नासा के वाइकिंग लैंडर्स (Viking landers) ने 1970 के दशक में वॉटर फ्रॉस्ट की इमेजेस को कैप्चर किया था। हाल ही में मार्स रिकॉइनेंस ऑर्बिटर ने इसके CO2 फ्रॉस्ट को ऑब्जर्व किया है। CO2 फ्रॉस्ट पृथ्वी पर मौजूद नहीं है। यह बेहद ठंडी जगह पर ही मुमकिन है, जहां तापमान -190 डिग्री या उससे भी कम होता है। इतने ठंडे और विषम मौसम के बावजूद मंगल ग्रह के किसी भी इलाके में कुछ फीट से ज्यादा बर्फ नहीं गिरती। वह भी समतल क्षेत्र में ही गिरती है।