पिछले कुछ वर्षों में दुनिया भर में समुद्रों को लेकर बहुत सी नई जानकारियां सामने आई हैं। इसी कड़ी में भारत में हिमालय पर्वत श्रृंखला में प्राचीन काल के एक समुद्र की खोज की गई है। यह लगभग 60 करोड़ वर्ष पुराना हो सकता है। यह खोज इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) और जापान की निगाता यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने की है।
इस बारे में IISc की ओर से जारी एक
स्टेटमेंट में बताया गया है कि हिमालय में मिले खनिज तत्वों में कैल्शियम और मैगनीशियम कार्बोनेट पाए गए हैं। इससे वैज्ञानिकों को यह समझने में आसानी हो सकती है कि किस प्रकार के इवेंट्स की वजह से धरती के इतिहास में एक बड़ा ऑक्सिजेनेशन हुआ होगा। Precambrian Research में प्रकाशित इस स्टडी में IISc के सेंटर फॉर अर्थ साइंसेज के PhD छात्र और इस स्टडी के प्रमुख लेखक, Prakash Chandra Arya ने बताया है, "हमने पैलियो ओशन्स के लिए एक टाइम कैप्सूल खोजा है।" वैज्ञानिकों का मानना है कि 50 करोड़ से 70 करोड़ वर्ष पहले बर्फ की मोटी शीट्स से धरती लंबी अवधि तक ढकी थी। इसके बाद धरती के वातावरण में ऑक्सिजन की मात्रा बढ़ने से दूसरा सबसे बड़ा ऑक्सिजेनेशन इवेंट हुआ था।
IISc का कहना है कि वैज्ञानिकों को अभी तक यह पूरी तरह पता नहीं चला है कि ये इवेंट्स कैसे आपस में जुड़े थे। इसकी बड़ी वजह बेहतर तरीके से संरक्षित किए गए जीवाश्मों की कमी और धरती के इतिहास में मौजूद सभी पुराने समुद्रों का गायब होना है। हालांकि, हिमालय में इस तरह की चट्टानों के मिलने से इस रहस्य का कोई उत्तर मिल सकता है। इस स्टडी में कहा गया है, "हमें प्राचीन काल के समुद्रों के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। हमें यह नहीं पता कि वे समुद्र मौजूदा समुद्रों से कितने अलग या समान थे। यह जानकारी मिलने पर धरती के पिछले वातावरण के बारे में कुछ संकेत मिल सकते हैं और इनका इस्तेमाल क्लाइमेट मॉडलिंग के लिए हो सकता है।"
हाल ही में रिसर्चर्स ने बताया था कि पिछले दो दशकों में दुनिया के समुद्रों में से 56 प्रतिशत से अधिक के संग में बड़ा बदलाव हुआ है। इसका कारण मानवीय कारणों से हो रहा जलवायु परिवर्तन हो सकता है। इन समुद्रों का आकार धरती पर कुल जमीन से बड़ा है। समुद्र का
रंग इसके पानी में जीवन और सामग्रियों का संकेत देता है। इक्वेटर के निकट के रीजंस में यह रंग समय के ज्यादा हरा हुआ है। इससे समुद्रों की सतह के अंदर इकोसिस्टम में बदलाव का पता चल रहा है। अमेरिका के Massachusetts Institute of Technology (MIT) के रिसर्चर्स ने Nature जर्नल में प्रकाशित अपने पेपर में लिखा है कि समुद्र के रंग में यह बदलाव लोगों को आंख से कम दिखता है।
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