TikTok पिछले कई दिनों से चर्चा में चल रहा था और लोगों को लगने लगा था कि शॉर्ट वीडियो प्लेटफॉर्म की भारत में वापसी हो सकती है।
Photo Credit: Unsplash/Solen Feyissa
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TikTok पिछले कई दिनों से चर्चा में चल रहा था और लोगों को लगने लगा था कि शॉर्ट वीडियो प्लेटफॉर्म की भारत में वापसी हो सकती है। मगर अब केंद्र सरकार ने पुष्टि कर दी है कि TikTok की भारत में वापसी नहीं हो रही है। जी हां केंद्रीय आईटी, सूचना एवं प्रसारण और रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि TikTok पर बैन हटाने का फिलहाल सरकार का कोई विचार नहीं है। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
केंद्रीय मंत्री वैष्णव ने साफ किया कि इस मुद्दे पर सरकार कोई चर्चा नहीं कर रही है। अभी तक किसी भी ओर से ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं आया है कि TikTok की मूल कंपनी ByteDance वापसी की तैयारी कर रही है। बीते महीने Airtel और Vodafone समेत कुछ ब्रॉडबैंड और मोबाइल नेटवर्क पर TikTok की वेबसाइट कुछ समय के लिए भारत में उपलब्ध हुई थी, जिसके बाद चर्चा होने लगी इसकी वापसी हो सकती है। इस छोटी सी गड़बड़ी से सोशल मीडिया पर तरह-तरह अफवाहें आनी शुरू हो गईं, लेकिन अब पुष्टि हो गई है कि ऐसा कुछ नहीं हो रहा है।
भारत में TikTok को जून 2020 में बैन कर दिया गया था। दरअसल केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा और डेटा प्राइवेसी संबंधी चिंताओं के चलते 59 चीनी ऐप्स को ब्लॉक कर दिया था। तभी से ये ऐप्स Apple App Store और Google Play Store से हट गए थे। भारत में उस दौरान TikTok को सबसे ज्यादा उपयोग किया जा रहा था, जिसमें 200 मिलियन से ज्यादा लोग इस प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रहे थे। ByteDance के अन्य प्रोडक्ट्स पर भी इसी तरह का प्रतिबंध लगाया गया था। TikTok के साथ-साथ Helo और CapCut जैसे ऐप्स को भी ब्लॉक कर दिया गया था।
आपको बता दें कि प्रतिबंध से पहले टेनसेंट, अलीबाबा, एंट फाइनेंशियल और शुनवेई कैपिटल जैसे चीनी कंपनियां भारतीय स्टार्टअप्स में सबसे बड़े स्तर पर निवेश कर रही थीं। उन्होंने ई-कॉमर्स, फिनटेक, फूड डिलीवरी, मोबिलिटी, डिजिटल कंटेंट और एजुकेशन टेक जैसे सेक्टरों में भारी निवेश किया था। हालांकि, केंद्र सरकार ने अप्रैल 2020 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लिए कड़े नियम पेश किए। नई पॉलिसी में जिन देशों की भारत के साथ भूमि सीमा लगी हुई है, उनके निवेशकों के लिए पूर्व सरकारी अनुमोदन अनिवार्य किया गया। इसके चलते चीन का भारत में निवेश काफी कम हो गया और कई भारतीय स्टार्टअप्स को चीनी हिस्सेदारी कम करने या अन्य विकल्प खोजने के लिए मजबूर होना पड़ा।
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