आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और ऑटोमेशन 2030 तक यूरोप और अमेरिका में जॉब मार्केट को बड़े पैमाने पर नया आकार देगा। एक हालिया स्टडी में इस बात पर रोशनी डाली गई है कि वर्तमान में काम करने के समय को 30% तक ऑटोमेट किया जा सकता है, खासकर उन रोल्स को जिनमें काम को दोहराया जाता है। इस बदलाव से STEM (साइंस,
टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स) और हेल्थ सर्विस क्षेत्रों में लेबर की मांग बढ़ने की उम्मीद है।
Mckinsey ने अपनी एक लेटेस्ट
रिपोर्ट जारी की है, जिसमें की गई स्टडी से पता चलता है कि AI आने वाले वर्षों में जॉब मार्केट में बड़ा असर डालने वाला है। इससे पड़ने वाले सबसे बड़े प्रभावों में से एक नौकरी में बदलाव की आवश्यकता होगा। यूरोप और अमेरिका दोनों में कथित तौर पर अनुमानित 12 मिलियन लोगों को बिजनेस बदलने या अपने स्किल्स को बेहतर करने की जरूरत पड़ेगी। यह आने वाले समय में नई प्रकार की नौकरियों के लिए वर्कफोर्स को तैयार करने के लिए रीस्किलिंग और अपस्किलिंग के महत्व की ओर इशारा है।
रिपोर्ट में उन स्किल्स की डिमांड में बढ़ोतरी की भविष्यवाणी की गई है जो टेक्नोलॉजिकल, सोशल और इमोशनल प्रकृति के हैं। इसके विपरीत, रेगुलर कामों और कम सैलेरी वाली नौकरियों में गिरावट की संभावना है, जिससे जॉब मार्केट में असमानता बढ़ेगी। इसका मतलब यह है कि जहां हाई-स्किल, हाई-सैलेरी वाली नौकरियां अधिक पॉपुलर हो जाएंगी, वहीं पारंपरिक लो-स्किल वाले रोल्स में कम अवसर मिल सकते हैं। निश्चित तौर पर यदि ऐसा होता है तो इससे आर्थिक असमानता बढ़ सकती है।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए कंपनियों और सरकारों को सहयोग करने की आवश्यकता होगी। कई ग्रुप्स पहले से ही अपने कर्मचारियों को नए रोल्स में स्विच करने में मदद करने के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम में भारी निवेश करने की योजना बना रहे हैं। इसके अलावा,
आर्टफिशियल इंटेलिजेंस की तैनाती से प्रोडक्टिविटी और आर्थिक विकास में बढ़ोतरी हो सकती है, लेकिन यह तभी संभव होगा जब वर्कफोर्स जरूरी स्किल्स से लैस हो। ऐसे में लोगों को आने वाले वर्षों में अपने स्किल्स को लगातार अपग्रेड करना होगा।
कुल मिलाकर, जबकि AI और ऑटोमेशन आर्थिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण अवसर पैदा करते हैं, वे काफी चुनौतियां भी पेश करेंगे, जिन्हें बिजनेस, सरकारों और इंस्टिट्यूशन द्वारा मिलजुलकर हल करने की जरूरत है।