हमारे चंद्रमा में कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां कभी सूर्य की रोशनी नहीं पहुंचती। ऐसे इलाके जहां स्थायी रूप से छाया रहती है और तापमान बेहद ठंडा होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि सूर्य के प्रकाश से वंचित इन जगहों की खोज की जाए तो यह बर्फ बनने की संभावना के कारण उपयोगी साबित हो सकते हैं। हालांकि इन क्षेत्रों के अंधेरे ने ही खोज को चुनौतीपूर्ण भी बनाया है। बहरहाल अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (Nasa) के आने वाले आर्टेमिस मिशन (Artemis mission) से पहले वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने चंद्रमा की सतह पर सबसे अंधेरे क्षेत्रों में झांकने के लिए एक मेथड डेवलप की है।
चंद्रमा के स्थायी रूप से अंधेरे क्षेत्रों में तापमान 100 डिग्री केल्विन (-173 डिग्री सेल्सियस) से कम और शून्य के करीब पहुंच जाता है। जहां पानी और बाकी वाष्पशील पदार्थ मिट्टी में जम सकते हैं। ETH ज्यूरिख के रिसर्चर्स के
अनुसार, इस क्षेत्र में बनी बर्फ पृथ्वी-चंद्रमा प्रणाली में पानी के इंटीग्रेशन का सुराग दे सकती है। बर्फ उन रिसोर्सेज के बारे में भी बता सकती है, जिनका इस्तेमाल अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा पर रहते हुए अपने मिशनों के लिए कर सकते हैं।
इन क्षेत्रों का पता लगाने के लिए टीम ने आर्टेमिस एक्सप्लोरेशन जोन में 44 शैडो क्षेत्रों की इमेज तैयार करने के लिए एक फिजिक्स-बेस्ड डीप लर्निंग-ड्राइवन पोस्ट-प्रोसेसिंग टूल का इस्तेमाल किया। यह टूल उन फोटॉनों को कैप्चर करने में कुशल है जो क्रेटर की दीवारों और आसपास के पहाड़ों से अंधेरे क्षेत्रों में बाउंस होते हैं।
लूनर एंड प्लैनेटरी इंस्टीट्यूट (LPI) के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ डेविड ए क्रिंग ने समझाया कि चंद्रमा के वो इलाके जहां हमेशा अंधेरा रहता है, वहां भी रास्ते डिजाइन किए जा सकते हैं। इससे आर्टेमिस अंतरिक्ष यात्रियों और रोबोटिक खोजकर्ताओं की चुनौतियां कम होंगी।
रिसर्चर्स के मुताबिक, नासा के आर्टेमिस मिशन के अंतरिक्ष यात्री उनके लिए डिजाइन किए गए स्पेससूट को पहनकर इन क्षेत्रों में सिर्फ 2 घंटे ही बिता पाएंगे। नई इमेजेस से आने वाले मिशनों के योजनाकारों को अंतरिक्ष यात्रियों का इन क्षेत्रों में मार्गदर्शन करने में मदद मिलेगी। टीम ने लूनर रिकोनिसेंस ऑर्बिटर कैमरा (Lunar Reconnaissance Orbiter Camera) से ली गई तस्वीरों पर अपनी मेथड इस्तेमाल की। यह
स्टडी जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में पब्लिश हुई है।