अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) ने 50 साल पहले चंद्रमा की सतह से सैंपल इकट्ठा किए थे। क्योंकि नासा एक बार फिर से अपने मून मिशन की तैयारी कर रही है, ऐसे में वैज्ञानिकों ने 50 साल बाद चंद्रमा की सतह से लिए गए सैंपलों का अध्ययन शुरू कर दिया है। साल 1972 में दिसंबर के महीने में अपोलो 17 मिशन के तहत अंतरिक्ष यात्री सैंपल लेकर चंद्रमा से लौटे थे। इन सैंपल्स को एक फ्रीजर में रख दिया गया था। इन सैंपलों को नासा के जॉनसन स्पेस सेंटर से मैरीलैंड के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर तक ले जानी की प्रक्रिया आसान नहीं रही। ऐसा करने में वैज्ञानिकों को चार साल लग गए।
वैज्ञानिकों ने जमे हुए अपोलो 17 के सैंपलों को प्रोसेस करने के लिए एक फैसिलिटी को डिजाइन और रेट्रोफिट करना शुरू किया है। उन्होंने एक नया दृष्टिकोण अपनाया है और उनका मानना है कि इसे फ्यूचर के मून मिशन में लागू किया जा सकता है। यह रिसर्च अपोलो नेक्स्ट जेनरेशन सैंपल एनालिसिस प्रोग्राम यानी ANGSA का हिस्सा है।
इस प्रोजेक्ट को नासा की जूली मिशेल लीड कर रही हैं। वह
कहती हैं कि हमने साल 2018 की शुरुआत में इसे शुरू किया और बहुत सारी तकनीकी कठिनाइयों से गुजरना पड़ा। हमने इसे भविष्य में कोल्ड सैंपल प्रोसेसिंग के लिए एक फैसिलिटी तैयार करने के लिए टेस्टिंग के रूप में देखा।
मिशेल ने कहा कि यह प्रोजेक्ट न सिर्फ आर्टेमिस प्रोग्राम को मदद करेगा, बल्कि फ्यूचर में सैंपल लाने के मसले को आसान बनाएगा। दरअसल, नासा की तैयारी आने वाले वर्षों में मंगल ग्रह से सैंपल लाने की है। मौजूदा वक्त में नासा का रोवर मंगल ग्रह पर सैंपल जुटाने का काम कर रहा है।
इस रिसर्च पर काम कर रहे लोगों के अनुसार, चंद्रमा की सतह के इन सैंपल्स में कुछ खास है, जिनका लगभग पांच दशकों में विश्लेषण नहीं किया गया है। चंद्रमा के कुछ सैंपलों में अमीनो एसिड का पता चला था, जो पृथ्वी पर जीवन के लिए जरूरी हैं। जाहिर तौर पर इस अध्ययन से नासा के अगले मून मिशन को काफी मदद मिलेगी। वह अपने आर्टेमिस मिशन के तहत इंसानों को एकबार फिर से चंद्रमा पर भेजाना चाहती है और इस बार वहां स्थायी सेटअप तैयार करना चाहती है।