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इन ग्रहों में पत्थर भी पिघल जाते हैं, NASA ने खोजे 3 हजार डिग्री फारेनहाइट वाले एक्सोप्लैनेट

NASA के हबल स्पेस टेलीस्कोप का इस्तेमाल करते हुए, एस्ट्रोनॉमर्स ने पाया कि WASP-178b का एक हिस्सा हमेशा इसके जलते हुए तारे के सामने रहता है।

इन ग्रहों में पत्थर भी पिघल जाते हैं, NASA ने खोजे 3 हजार डिग्री फारेनहाइट वाले एक्सोप्लैनेट

एस्ट्रोनॉमर्स ने KELT-20b ग्रह पर भी स्टडी की है

ख़ास बातें
  • WASP-178b एक्सोप्लैनेट 1300 लाइट ईयर दूर है
  • 400 लाइट ईयर दूर बृहस्पति (जुपिटर) के साइज का है KELT-20b ग्रह
  • ये एक्सोप्लैनेट टाइटेनियम को पिछलाने की क्षमता रखते हैं
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NASA के वैज्ञानिकों ने ऐसे ग्रह खोजे हैं, जहां तापमान 3,000 डिग्री फारेनहाइट (लगभग 1650 डिग्री सेल्सियस) से अधिक हो जाता है, जो टाइटेनियम को भी पिघलाने के लिए काफी है। अल्ट्रा-हॉट एक्सोप्लैनेट के अपने अध्ययन के दौरान, नासा हबल टेलीस्कोप के साथ काम करने वाले खगोलविदों (एस्ट्रोनॉमर्स) की टीमों ने 1300 लाइट ईयर दूर एक एक्सोप्लैनेट WASP-178b की जानकारी दी है।

NASA के हबल स्पेस टेलीस्कोप का इस्तेमाल करते हुए, एस्ट्रोनॉमर्स ने पाया कि WASP-178b का एक हिस्सा हमेशा इसके जलते हुए तारे के सामने रहता है। दिन के समय यह देखा गया है कि एक्सोप्लैनेट पर वातावरण सिलिकॉन मोनोऑक्साइड गैस से घिरा हुआ रहता है। वहीं, अंधेरे वाले हिस्से की  तरफ सिलिकॉन मोनोऑक्साइड आसमान से नीचे गिरने वाली चट्टानों में बदलने के लिए पर्याप्त ठंडा होता है। लेकिन सुबह होने के समय और शाम के समय, ये वही चट्टानें गर्म तापमान के कारण भाप हो जाती हैं। यह अध्ययन नेचर पत्रिका (Nature journal) में पब्लिश हुआ था।

बाल्टीमोर, मैरीलैंड में जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय से दो अध्ययनों पर सह-लेखक डेविड सिंग (David Sing) ने कहा (अनुवादित) "जब आप पृथ्वी को देखते हैं, तो हमारे सभी मौसम भविष्यवाणियां अभी भी बारीकी से ट्यून की जाती हैं, जिसे हम माप सकते हैं। लेकिन जब आप दूर के एक्सोप्लैनेट में जाते हैं, तो आपके पास भविष्यवाणी के लिए सीमित शक्तियां होती हैं, क्योंकि आपने इस बारे में एक सामान्य सिद्धांत नहीं बनाया है कि कैसे एक वातावरण में सब कुछ एक साथ चलता है और चरम स्थितियों पर कैसे प्रतिक्रिया करता है।”

एस्ट्रोनॉमर्स ने KELT-20b ग्रह को भी देखा, जो कि 400 लाइट ईयर दूर बृहस्पति (जुपिटर) ग्रह के साइज़ का एक विशाल एक्सोप्लैनेट है। अपने अध्ययन में, जो एस्ट्रोफिजिकल पत्रिका Letters में पब्लिश हुआ था, उन्होंने पाया कि इस बाहरी दुनिया पर अपने मूल तारे से लगातार अल्ट्रावॉयलेट लाइट आती है, जिससे पृथ्वी के समताप मंडल के समान इसके वातावरण में एक थर्मल परत का निर्माण हो रहा है।

पृथ्वी पर रहते हुए, ओजोन परत पृथ्वी की सतह से 7 से 31 मील के बीच उच्च तापमान को एक परत तक सीमित करके हानिकारक यूवी लाइट से हमारी रक्षा करती है, वही KELT-20b के मामले में ऐसा नहीं है। एक्सोप्लैनेट का मूल तारा वातावरण में धातुओं को पिछला कर एक मजबूत उलटी थर्मल परत बनाने का काम कर रहा है।
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