पृथ्वी से बाहर जीवन की मौजूदगी की बात आती है, तो एक्सोप्लैनेट सबसे बड़े संभावित उम्मीदवारों के रूप में नजर आते हैं। ऐसे ग्रह जो सूर्य के अलावा अन्य तारों की परिक्रमा करते हैं, एक्सोप्लैनेट कहलाते हैं। वैज्ञानिकों ने ऐसे कई एक्सोप्लैनेट को अबतक खोजा है, जो पृथ्वी की तरह ही चट्टानी हैं। हालांकि विस्तृत शोध में वहां जीवन की संभावनाएं नजर नहीं आईं, क्योंकि कई ग्रहों का तापमान बहुत अधिक है। इस बीच अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (Nasa) ने एक नया पृथ्वी जैसा ग्रह खोजा है। यह काफी दूर हमारी आकाशगंगा के बाहरी इलाके में है। ‘रॉस 508 बी' (Ross 508 b) नाम के इस नए सुपर अर्थ (Super Earth) ने खगोलविदों की उम्मीदें बढ़ा दी हैं, क्योंकि यह अपने लाल बौने तारे के रहने योग्य जोन में स्थित है। पृथ्वी जैसे इस ग्रह की खोज में सुबारू टेलीस्कोप (Subaru Telescope) ने भूमिका निभाई। जिस पर इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोग्राफ का इस्तेमाल करते हुए ग्रह को खोजा गया।
‘रॉस 508 बी' को पृथ्वी से भी बड़ी संभावित चट्टानी दुनिया माना जा रहा है, लेकिन यह अपने रहने योग्य जोन से मूव कर रहा है। इसके बावजूद उम्मीदें बरकरार हैं, क्योंकि यह ग्रह अपनी सतह पर पानी को बनाए रखता है, जिससे जीवन की संभावना को बल मिलता है।
नासा ने बताया है कि ‘रॉस 508 बी' एक सुपर अर्थ एक्सोप्लैनेट है। यह M-टाइप तारे की परिक्रमा करता है, जो पृथ्वी से लगभग 37 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है। इस ग्रह का द्रव्यमान 4 पृथ्वी के बराबर है और ग्रह को अपने तारे की एक परिक्रमा करने में 10.8 दिन लगते हैं।
सवाल उठता है कि आखिर वैज्ञानिक उन ग्रहों को कैसे ढूंढते हैं, जो रहने लायक हो सकते हैं। इसका जवाब हैं गोल्डीलॉक्स जोन। ये ऐसे जोन होते हैं जिनसे होकर गुजरने वाले ग्रहों में जीवन की संभावना हो सकती है। नासा ने कहा है कि यह ऐसा ग्रह है, जो अपनी सतह पर पानी बनाए रखने में सक्षम हो सकता है और भविष्य में M क्लास वाले बौने तारों के आसपास जीवन की संभावना का अध्ययन करने के लिए महत्वपूर्ण होगा।
हाल में एक अध्ययन से पता चला है कि विभिन्न परिस्थितियों में भी कई अरबों वर्षों तक लिक्विड वॉटर, एक्सोप्लैनेट की सतह पर मौजूद रह सकता है। पृथ्वी की तरह जीवन दे सकने वाले एक्सोप्लैनेट की खोज में लिक्विड वॉटर यानी पानी की भूमिका महत्वपूर्ण है। बर्न यूनिवर्सिटी, ज्यूरिख यूनिवर्सिटी और नेशनल सेंटर ऑफ कॉम्पीटेंस इन रिसर्च (NCCR) के रिसर्चर्स ने समझाया है कि रहने योग्य एक्सोप्लैनेट की खोज के लिए इस दृष्टिकोण की बेहद जरूरत है।