थोड़ी सी अमेरिकी मदद के साथ चंद्रयान-2 पूरी तरह देशज अभियान होगा: इसरो

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गैजेट्स 360 स्टाफ, अपडेटेड: 4 अप्रैल 2016 14:09 IST
भारत ने चंद्रयान-2 की अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना में ‘एकला चलो’ का रूख अपनाते हुए रूस के साथ कोई रिश्ता नहीं रखने का फैसला किया है और इस तरह अमेरिका की ‘‘थोड़ी’’ सी मदद के साथ यह एक देशज परियोजना होगी।

इसरो के अध्यक्ष ए. एस. किरण कुमार ने कहा चंद्रयान में देश में बने लैंडर और रोवर होंगे और इसे दिसंबर 2017 या 2018 के पूर्वार्ध में भेजा जाएगा। इस यान में ऐसे उपकरण होंगे जो नमूने जमा करेगा और धरती पर आंकड़े भेजेगा।

चंद्रयान इसरो की तरफ से बाह्य अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले अभियानों की एक जारी श्रंखला है।

इसरो अपने पहले चंद्रयान अभियान में चांद पर पानी की एक अहम खोज करने में कामयाब रहा था। भारत ने रूस को इस परियोजना से हटा दिया। अब यह एक देशज परियोजना होगी, अलबत्ता अमेरिका की थोड़ी सी मदद के साथ।

उल्लेखनीय है कि दिसंबर 2010 में भारत ने इस पर सहमति जताई थी कि रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोसकॉसमोस चंद्रयान के लूनर लैंडर के लिए जिम्मेदार होगा जबकि इसरो ऑरबिटर और रोवर के साथ ही साथ जीएसएलवी के माध्यम से उसे प्रक्षेपित भी करेगा। बाद में, कार्यकर्मात्मक विन्यास में परिवर्तन के बाद यह फैसला किया गया कि लूनर लैंडर के विकास का काम भी इसरो करेगा और चंद्रयान-2 पूरी तरह एक भारतीय अभियान होगा।
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इसरो के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘‘रूसी लैंडर के साथ कुछ दिक्कतें थीं और उन्होंने कहा था कि उन्हें परीक्षण के लिए कुछ और समय चाहिए। इस बीच, हमने इसे देशज स्तर पर विकास करने का फैसला किया।’’ बहरहाल, देशज होने के बावजूद इसरो परियोजना के लिए नासा की सेवाएं लेगा।

कुमार ने कहा, ‘‘आप एक स्थल से उपग्रह पर निगाह नहीं रख सकते..क्योंकि आपको अन्य स्थलों से समर्थन की जरूरत है। नासा के साथ गठजोड़ चंद्रयान के उद्देश्य से डीप स्पेस नेटवर्क की सेवाओं तक सीमित है। हम इस परियोजना में रूसी मदद का उपयोग नहीं कर रहे हैं।’’ पिछले कुछ साल के दौरान नासा के साथ इसरो का अंतरिक्ष सहयोग बढ़ रहा है। गौरतलब है कि 1974 और 1998 में भारत के परमाणु परीक्षणों के बाद दोनों एजेंसियों के बीच गठबंधन रूक गया था। अब जब दोनों देशों के बीच रिश्ते प्रगाढ़ हो रहे हैं तो दोनों अंतरक्षि एजेंसियों के बीच सहयोग भी बढ़ रहा है।
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दोनों एजेंसियों के बीच मंगल परियोजना में भी सहयोग हो रहा है।
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उधर, यह बात दीगर है कि चंद्रयान परियोजना पर भारत ने ‘एकला चलो’ का रूख अपनाया है वह दूसरी परियोजनाओं पर रूस के साथ सहयोग कर रहा है।

कुमार ने कहा, ‘‘भविष्य में सेमी-क्रायोजेनिक इंजन के परीक्षण के लिए कुछ सुविधाओं की जरूरत पड़ेगी। इसलिए हम उनके साथ काम करने की संभावनाओं पर अब भी विचार कर रहे हैं। सभी अंतरिक्ष एजेंसियों ने महसूस किया कि जब तक वे एक साथ काम नहीं करेंगे उनके अभियानों के बहुत सारी लागत साझा नहीं की जा सकती है।’’
 

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ये भी पढ़े: , Chandrayaan, Chandrayaan 2, India, Isro, Nasa, Roscosmos, Science

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