अमेरिका, चीन और ब्रिटेन की तरह भारत ने भी एक
‘जीनोम प्राेजेक्ट' को पूरा किया है। डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी ने मंगलवार को ऐलान किया कि '10,000 जीनोम' प्राेजेक्ट को पूरा किया गया है। यह एक सीक्वेंसिंग है, जिससे भविष्य में जीन-बेस्ड इलाज करने में मदद मिलेगी। साइंस और टेक्नॉलजी मंत्री जितेंद्र सिंह ने इसे भारत में विज्ञान के लिए एक महत्वपूर्ण पल बताया है। प्रोजेक्ट के पूरा होने से भारत की जनसंख्या में विविधता का पता भी चलेगा।
प्रोजेक्ट में देश के लगभग 20 इंस्टिट्यूट शामिल हुए, जिसमें भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बेंगलूरू और सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, हैदराबाद प्रमुख हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार, देश की 130 करोड़ आबादी में 4600 से ज्यादा पॉपुलेशंस ग्रुप हैं। कई वजहों से इन ग्रुप्स में जेनेटिक विविधता आई है। कई बार कुछ ग्रुप्स में बीमारी पैदा करने वाले म्यूटेशंस होने लगते हैं। एक अधिकारी के हवाले से द हिंदू की रिपोर्ट में कहा गया है कि कई नुकसानदेह म्यूटेशंस दुनिया में कम हैं, लेकिन भारत में उनकी फ्रीक्वेंसी ज्यादा है। यानी भारत में कुछ बीमारियां, पश्चिमी देशों से पहले डेवलप हो जाती हैं और कुछ एनेस्थेटिक दवाएं भी भारतीयों पर कम असर करती हैं।
अधिकारी ने जीनोम प्रोजेक्ट को क्रांतिकारी पहल बताया साथ ही कहा कि ज्यादा दुर्लभ म्यूटेशंस का पता लगाने के लिए भविष्य में और जीनोम सैंपल्स लेने की जरूरत होगी।
इस तरह के प्रोजेक्ट का मकसद देश की जनसंख्या में मौजूद विविधता के बारे में गहराई से जानना है साथ ही इलाज के तरीकों को बेहतर बनाना है। जीनोम सीक्वेंसिंग से लोगों के हिसाब से दवाइयां बनाई जा सकेंगी। जीन थेरेपी में सुधार करना भी इसका एक लक्ष्य है।
जीनोम सीक्वेंसिंग पर केंद्रीय मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत में सामने आ रही समस्याओं का भारतीय समाधान खोजने की सख्त जरूरत है। उन्होंने कहा, हमारा देश अब वैज्ञानिक रूप से डेवलप देशों में उभर रहा है। हालिया जीनोम सीक्वेंसिंग में देश के 99 कम्युनिटीज की आबादी को शामिल किया गया। इस इनिशिएटिव को ‘जीनोम इंडिया' नाम दिया गया है।