2023 में सौर तूफान बहुत ज्यादा देखने को मिल रहे हैं। ये पृथ्वी के तापमान को बढ़ा रहे हैं। यह तापमान धरती के ऊपरी, या बाहरी वायुमंडल, जिसे थर्मोस्फीयर (thermosphere) कहते हैं, में तेजी से बढ़ा है। 2023 की शुरुआत से लेकर अब तक कई सौर तूफान पृथ्वी से टकरा चुके हैं। जिन्होंने थर्मोस्फीयर को इतना गर्म अभी से कर दिया है, जितना यह अगले 20 सालों में होने वाला था। सोलर स्टॉर्म, सौर तूफान, या जियोमेग्नेटिक स्टॉर्म ऐसे तूफान होते हैं जो सूर्य की सतह से निकलते हैं। सूर्य के लिए 2023 इसकी साइकिल का 11 वां साल है। हर 11 साल में सूर्य की सतह पर होने वाली गतिविधियों में दोगुनी तेजी आती है। हर 11 साल में सूर्य एक साइकल पूरी करता है। यह सूर्य की 25वीं साइकल का समय है। इसमें परिणाम यह होता है कि सूर्य की सतह से ऊर्जा के तूफान फूटते हैं, जिनका असर सौरमंडल के ग्रहों पर बहुत ज्यादा पड़ता है।
अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने 28 अक्टूबर 2021 को पहली बार एक सौरतूफान के बारे में पता लगाया था जिसने धरती और चंद्रमा को एक साथ प्रभावित किया था। Independent की
रिपोर्ट के अनुसार, सूर्य से उठा यह सौरतूफान इतने बड़े एरिया में फैला था कि मंगल और धरती तक एकसाथ पहुंचा था असर। Geographical Research Letters में एक नई स्टडी
प्रकाशित हुई है। यह बताती है कि कैसे पहली बार धरती, चंद्रमा और मंगल पर एक साथ सौरतूफान टकराया। यह अपने आप में एक महत्वपूर्ण घटना थी, क्योंकि इस घटना का प्रभाव चांद और मंगल के भावी मिशनों पर पड़ने वाला था।
सौरतूफानों के समय सूर्य से जो कण बाहर फूटते हैं, उनमें इतनी ज्यादा ऊर्जा होती है कि ये आसानी से धरती के चुम्बकीय कवच को पार कर जाते हैं। यह मेग्नेटिक परत हमें कम ऊर्जा वाले सौर तूफानों से बचाती रहती है। चंद्रमा और मंगल का अपना खुद का कोई मेग्नेटिक फील्ड नहीं है। इसलिए सौर कण बहुत आसानी से इनकी सतह पर पहुंच जाते हैं। सतह पर पहुंच कर ये मिट्टी के कणों के साथ क्रिया करके सेकंडरी रेडिएशन पैदा करते हैं।
यूरोपियन स्पेस एजेंसी का कहना है कि मंगल पर वायुमंडल की एक पतली परत जरूर पाई जाती है। यह कम ऊर्जा वाले कणों को सतह पर पहुंचने से रोक लेती है, जबकि ज्यादा ऊर्जा वाले सौर कणों को धीमा कर देती है। चूंकि चंद्रमा और मंगल मनुष्य के लिए अंतरिक्षीय खोज का अहम हिस्सा हैं, इसलिए सौर तूफानों के प्रभाव को समझना बहुत जरूरी है। रिपोर्ट के अनुसार, 700 मिलीग्रे से ज्यादा की रेडिएशन अंतरिक्ष यात्रियों को बीमार कर सकती है। यह बोन मैरो को खराब कर सकती है जिसके कारण कोई भी इंफेक्शन या इंटरनल ब्लीडिंग शुरू हो सकती है। ऐसे में अगर भविष्य में सौर तूफान मंगल और चंद्रमा को इसी तरह प्रभावित करते हैं तो स्पेस मिशनों पर भी इसका प्रभाव पड़ना तय है।