भारत समेत इन दिनों दुनिया के कई हिस्सों में जबरदस्त गर्मी देखने को मिल रही है। जब शुष्क क्षेत्रों में गर्मी बढ़ती है तो मनुष्य का शरीर पसीना बाहर निकाल कर खुद को ठंडा करने लगता है। लेकिन नमी वाले इलाकों में शरीर से पसीना इतनी जल्दी बाहर नहीं निकल पाता, इसलिए शरीर को ज्यादा गर्मी महसूस होती है। लेकिन धरती पर कई इलाके ऐसे भी हैं जहां पर गर्मी हद से ज्यादा बढ़ जाती है। गर्म मरूस्थल के साथ में अगर समुद्र भी मौजूद हो तो ऐसे इलाकों में भयंकर गर्मी पाई जाती है, क्योंकि यहां गर्मी के साथ नमी भी शामिल हो जाती है।
हवा में जब नमी का स्तर बढ़ता है तो पसीना निकलने के बाद भी वह जल्दी से भाप में नहीं बदल पाता है। इसलिए नमी वाले इलाकों शरीर का पसीने द्वारा खुद को ठंडा रखने का तरीका भी फेल हो जाता है। वहीं, शुष्क इलाकों में मनुष्य शरीर पसीने के द्वारा आसानी से खुद को ठंडा रख सकता है। मध्य पूर्व, पाकिस्तान, भारत जैसे इलाकों में गर्मी के साथ नमी वाली हवा भी मिल जाती है। इन दोनों चीजों का एक साथ मिलना असहनीय गर्मी पैदा करता है जो कि घातक हो सकता है।
वैज्ञानिक गर्मी के साथ जुड़े इस खतरे को मापने के लिए वेट बल्ब थर्मामीटर (wet bulb thermometer) का इस्तेमाल करते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, अगर इस बल्ब का तापमान 35 डिग्री सेल्सियस या उससे ऊपर होता है तो मनुष्य का शरीर उस मात्रा में गर्मी को बाहर नहीं निकाल पाता है जितना कि ठंडा रखने के लिए निकाली जानी चाहिए। इसलिए भारत जैसे इलाकों में नमी और गर्मी के लम्बे समय तक संपर्क में रहने से हीट स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।
भारत में मई 2024 में जब तापमान 49 डिग्री सेल्सियस के आसपास था तो नमी और गर्मी से पैदा हुए हालातों में बहुत से लोग हीट स्ट्रोक से मारे गए। इस तरह की परिस्थितियों में बहुत सावधान रहने की जरूरत होती है। क्लाइमेट चेंज इस वक्त सबसे अधिक ज्वलंत विषय है। जीवाश्म इंधन का जलना वातावरण में CO2 की मात्रा बढ़ाता है। यह गैस वातावरण में एक परत बना लेती है और सूरज की गर्मी को सतह के करीब ही रोक लेती है, जिससे सतह बहुत अधिक गर्म होने लगती है। इसी से
क्लाइमेट चेंज होता है।
धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है। क्लाइमेट चेंज सिर्फ गर्मी ही पैदा नहीं कर रहा है, इसके साथ और भी कई समस्याएं पैदा हो रही हैं। वातावरण में गर्म हवा जब बढ़ जाती है तो यह ज्यादा वाष्पीकरण करती है। जिससे फसलों, जंगलों और खेत-खलिहानों से पानी तेजी से भाप बनकर उड़ने लगत है और ये सूख जाते हैं। तापमान के बढ़ते हरेक डिग्री सेल्सियस के साथ जंगल की आग की घटनाएं 6 गुना बढ़ जाती हैं।
गर्म होती धरती के कारण सागरों का आकार भी बढ़ता जा रहा है। इससे तटीय इलाके बाढ़ की चपेट में आ रहे हैं। कहा जा रहा है कि साल 2100 तक आते आते 2 अरब लोगों को अपने रहने की जगह बदलनी पड़ेगी।
बुरी खबर यह है कि कार्बन का जलाया जाना जब तक बंद नहीं होता है, तब तक धरती का तापमान लगातार बढ़ता ही जा चला जाएगा। लेकिन अच्छी खबर यह है कि जीवाश्म ईंधन के लिए अब कई विकल्प मौजूद हैं। इसमें इलेक्ट्रिक एनर्जी, वाइंड एनर्जी, सोलर एनर्जी जैसे ऊर्जा स्रोत शामिल हैं। इनको अपनाकर कार्बन बर्निंग कम की जा सकती है। और धरती को जलती भट्टी बनने से रोका जा सकता है।