दुनियाभर में साफ पानी के लिए ग्राउंड वॉटर का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर होता है। हाल के वर्षों में कई रिपोर्ट्स में सामने आया है कि ग्राउंड वॉटर का लेवल काफी नीचे जा रहा है। गिरते भूजल स्तर को किसी तरह नियंत्रित कर भी लिया जाए, लेकिन एक नई
स्डटी ने चिंता बढ़ाई है। इस ग्लोबल स्टडी में कहा गया है कि इस सदी के आखिर तक उथले ग्राउंडवॉटर का तापमान औसत से 2.1 से 3.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने का अनुमान है। क्योंकि गर्म ग्राउंडवॉटर में ऑक्सीजन कम होती है। इस वजह से शुष्क मौसमों के दौरान ग्राउंडवॉटर पर निर्भर होने वाली नदियों में मछलियां मर सकती हैं।
उथला ग्राउंडवॉटर (shallow groundwater) आमतौर पर वह पानी है, जो जमीन से 3 फीट से भी कम में उपलब्ध हो जाता है। wotr.org के अनुसार, भारत में उथला ग्राउंडवॉटर की उपलब्धता असम, आंध्र प्रदेश, मेघालय, कर्नाटक, केरल, झारखंड व तमिलनाडु में कुछ पैचेज में है।
हालिया स्टडी नेचरजियोसाइंस में
पब्लिश हुई है। इसमें कहा गया है कि मध्य रूस, उत्तरी चीन, उत्तरी अमेरिका और एमेजॉन के जंगलों में गर्मी के कारण ग्राउंडवॉटर का टेंपरेंचर बढ़ने की उम्मीद है। ऑस्ट्रेलिया में भी यह देखने को मिलेगा।
टेंपरेचर बढ़ने से ग्राउंडवॉटर पर निर्भर रहने वाले इकोसिस्टम को खतरा हो सकता है। रिसर्चर्स का कहना है कि क्लाइमेट चेंज के अलग-अलग नुकसानों को आंका जा रहा है, लेकिन ग्राउंडवॉटर पर इसका क्या असर होगा, इस बारे में ज्यादा नहीं सोचा जा रहा।
सबसे ज्यादा चिंता पीने के पानी की सेफ्टी की है। स्टडी का अनुमान है कि साल 2099 तक दुनियाभर में 588 मिलियन लोग ऐसे इलाकों में रह रहे होंगे, जहां का ग्राउंडवॉटर तय मानकों से ज्यादा गर्म होगा। ग्राउंडवॉटर के गर्म होने से उसमें रोगाणुओं की संख्या बढ़ सकती है और लोगों की सेहत पर गंभीर असर हो सकता है। सबसे ज्यादा असर उन इलाकों पर पड़ेगा जहां पहले से ही पीने के पानी की उपलब्धता कम है।