स्मार्टफोन, लैपटॉप, टैबलेट जैसे डिवाइसेज अब हमारी जिंदगी का जरूरी हिस्सा बन चुके हैं। ऐसे में हम दिन का अधिकतर समय इस तरह की डिवाइसेज के स्क्रीन को देखकर बिताते हैं जिससे आंखों पर बुरा असर पड़ता है। लेकिन अब चश्मा बनाने वाली कंपनियां ब्लू लाइट ग्लास बनाने लगी हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि ये हमारी आंखों की सेहत के लिए उपयोगी होते हैं। लेकिन क्या ये सच में आखों को बचाते हैं? इस रिपोर्ट के माध्यम से जानने की कोशिश करते हैं।
ब्लू लाइट ग्लासेज का चलन पिछले कुछ सालों से काफी बढ़ गया है। कहा जाता है कि ये स्क्रीन के बुरे प्रभाव से आंखों को बचाते हैं और इनसे
नींद आने में भी मदद मिलती है। लेकिन
NDTV के अनुसार, यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न, और यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के शोधकर्ता कुछ और ही कहते हैं। रिसर्चर कह रहे हैं कि ब्लू लाइट ग्लासेज स्क्रीन से होने वाले नुकसान को रोकने में कोई खास भूमिका अदा नहीं करते हैं। और न ही इनसे नींद की क्वालिटी सुधरती है।
लेखक लौरा डाउनी ने कहा कि उन्होंने पाया है कि थोड़े से समय के लिए ही ब्लू लाइट फिल्टर वाले लेंस कंप्यूटर से होने वाली आंखों की थकान को रोक सकते हैं। लेकिन लम्बे समय के लिए यह बहुत कारगर साबित नहीं किए जा सके हैं। स्टडी में शोधकर्ताओं ने कहा है कि डिवाइसेज से निकलने वाली ब्लू लाइट आंखों को नहीं थकाती है, बल्कि इसके पीछे अधिकतर लोगों में कम्प्यूटर विजन सिंड्रोम पाया जाता है जो कि कंप्यूटर के सामने लम्बे समय तक बैठने से संबंधित होता है।
स्टडी आगे कहती है कि ब्लू लाइट फिल्टर डिवाइसेज से आने वाली केवल 10 से 25% ब्लू लाइट को ही रोक सकते हैं। इससे ज्यादा लाइट को रोकने के लिए इनमें अम्बर रंग होना चाहिए, लेकिन अगर इतना ज्यादा कलर लेंस में दिया जाएगा तो आंखों को सही रंग पहचानने में दिक्कत हो सकती है। कुल मिलाकर शोधकर्ता कहते हैं कि ब्लू लाइट फिल्टर करने वाले लेंसेज पर इस मामले में बहुत ज्यादा निर्भर नहीं रहा जा सकता है। इसमें अभी और एडवांसमेंट की जरूरत है।