हमारा ब्रह्मांड रहस्यों से भरा है, जहां लाखों ऑब्जेक्ट्स घूम रहे हैं। हमारी आकाशगंगा में ऐसी बहुत सी चीजें हैं, जो छुपी हुई हैं। हम उनमें से बहुत कम के बारे में जानते हैं। हालांकि वो हमारे जीवन को किसी ना किसी रूप में प्रभावित करती हैं। इन पर स्टडी करने की कोशिशें होती रही हैं। ऐसे ही एक ऑब्जेक्ट का पता खगोलविदों ने लगाया है, जो पृथ्वी से लगभग 3,000 से 4,000 प्रकाश वर्ष दूर है। इससे रहस्यमयी रोशनी निकलती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह चीज एक ‘ब्लैक विडो' स्टार हो सकती है, जो तेजी से घूमने वाला पल्सर या न्यूट्रॉन तारा हो सकता है। यह ऐसा तारा होता है, जो अपने छोटे और सहयोगी तारे को धीरे-धीरे खाकर पनपता है।
ब्लैक विडो स्टार काफी दुर्लभ हैं। खगोलविद मिल्की वे यानी हमारी आकाशगंगा में ऐसे सिर्फ दो दर्जन स्टार का ही पता लगा पाए हैं। मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (MIT) के रिसर्चर्स ने इस नए ब्लैक विडो स्टार का पता लगाया है। उनका मानना है कि यह उन सभी ब्लैक विडो स्टार में सबसे अजीब और अनोखा ब्लैक विडो पल्सर हो सकता है। इसका नाम ZTF J1406+1222 रखा गया है।
रिसर्चर्स ने कहा है कि इस तारे की सबसे छोटे ऑर्बिटल पीरियड की पहचान भी की गई है। यह ब्लैक विडो स्टार और इसका सहयोगी तारा हर 62 मिनट में एक-दूसरे का चक्कर लगाते हैं। यह
सिस्टम यूनिक है, क्योंकि यह एक तीसरे तारे को होस्ट करता है, जो हर 10,000 साल में अपने दो आंतरिक तारों की परिक्रमा करता है।
यह थ्री-स्टार सिस्टम सवाल उठाता है कि आखिर यह सब कैसे बना होगा। MIT के रिसर्चर्स को लगता है कि यह सिस्टम संभवतः ग्लोब्यूलर क्लस्टर के रूप में पहचाने जाने वाले पुराने तारों के घने तारामंडल से पैदा हुआ है। हो सकता है कि यह खास सिस्टम अपने क्लस्टर से दूर आकाशगंगा की ओर चला गया हो।
MIT के डिपार्टमेंट ऑफ फिजिक्स के प्रमुख रिसर्चर और फिजिसिस्ट केविन बर्ज ने कहा कि शायद यह सिस्टम हमारी आकाशगंगा में सूर्य के होने से भी पहले से मौजूद है। यह स्टडी नेचर जर्नल में
पब्लिश हुई है। रिसर्चर्स ने इस ट्रिपल स्टार सिस्टम का पता लगाने के लिए एक नया तरीका अपनाया। उन्होंने इसके लिए विजिबल लाइट का इस्तेमाल किया।