भारत में जल्द सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस लॉन्च कर सकती है Elon Musk की Starlink

स्टारलिंक को अंतिम स्वीकृति इंटर-मिनिस्ट्रियल स्टैंडिंग कमेटी से लेनी होगी। इसके बाद कंपनी को प्रोविजनल स्पेक्ट्रम एलॉट किया जाएगा

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Written by आकाश आनंद, अपडेटेड: 5 जून 2025 22:50 IST
ख़ास बातें
  • स्टारलिंक को DoT की ओर से जल्द GMPCS लाइसेंस मिल सकता है
  • कंपनी को अंतिम स्वीकृति इंटर-मिनिस्ट्रियल स्टैंडिंग कमेटी से लेनी होगी
  • इसके बाद स्टारलिंक को प्रोविजनल स्पेक्ट्रम एलॉट किया जाएगा

Amazon के सैटेलाइट इंटरनेटसे जुड़े प्रोजेक्ट Kuiper को अप्रूवल नहीं मिला है

बिलिनेयर Elon Musk की सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस उपलब्ध कराने वाली Starlink जल्द देश में अपनी सर्विस लॉन्च कर सकती है। स्टारलिंक को टेलीकॉम डिपार्टमेंट (DoT) की ओर से ग्लोबल मोबाइल कम्युनिकेशन बाय सैटेलाइट (GMPCS) लाइसेंस मिल सकता है। 

इस लाइसेंस से सैटेलाइट बेस्ड नेटवर्क सर्विस प्रोवाइडर्स को सैटेलाइट टर्मिनल्स लगाने की अनुमति मिलती है। एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि स्टारलिंक को लेटर ऑफ इंटेंट (LoI) में बताई गई सिक्योरिटी कम्प्लायंस से जुड़ी शर्तों को 7 जून तक पूरा करने की समयसीमा दी गई थी और कंपनी ने इसे पूरा कर दिया है। हालांकि, इसका यह मतलब नहीं है कि स्टारलिंक की सर्विस तुरंत शुरू हो सकती है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कंपनी को गेटवेज स्थापित करने होंगे। यह नेटवर्क ऑपरेशंस सेंटर होता है और इसमें कुछ महीने लग सकते हैं। 

स्टारलिंक को अंतिम स्वीकृति इंटर-मिनिस्ट्रियल स्टैंडिंग कमेटी से लेनी होगी। इसके बाद कंपनी को प्रोविजनल स्पेक्ट्रम एलॉट किया जाएगा। हालांकि, अमेरिकी टेक्नोलॉजी कंपनी Amazon के सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस से जुड़े प्रोजेक्ट Kuiper को देश में सर्विस शुरू करने के लिए अप्रूवल नहीं मिला है। एमेजॉन को इस सर्विस के लिए DoT की ओर से LoI जारी नहीं किया गया है। स्टारलिंक को मस्क की रॉकेट कंपनी SpaceX ने डिवेलप किया है। यह सैटेलाइट टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से कई देशों में हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड इंटरनेट सर्विस उपलब्ध करा रही है। सामान्य इंटरनेट सर्विसेज के लिए जियोस्टेशनरी सैटेलाइट्स का इस्तेमाल किया जाता है। इसके विपरीत, स्टारलिंक सबसे बड़े लो अर्थ ऑर्बिट कॉन्स्टेलेशन का इस्तेमाल करती है। 

Reliance Jio और Bharti Airtel जैसे टेलीकॉम कंपनियों ने कहा है कि अगर सैटेलाइट स्पेक्ट्रम का प्राइस कम रखा जाता है तो इससे उनके बिजनेस को नुकसान होगा। इन कंपनियों का कहना है कि इससे स्टारलिंक कंपनियों को फायदा हो सकता है। पिछले महीने टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) ने सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स के लिए उनके वार्षिक रेवेन्यू का चार प्रतिशत केंद्र सरकार को भुगतान करने का प्रपोजल दिया था। स्टारलिंक ने सैटेलाइट स्पेक्ट्रम का ऑक्शन नहीं करने के लिए लॉबीइंग की थी। इस कंपनी का कहना था कि इसके लिए इंटरनेशनल ट्रेंड के अनुसार लाइसेंस दिया जाना चाहिए। स्टारलिंक की दलील थी कि यह एक नेचुरल रिसोर्स है जिसकी कम्युनिकेशन से जुड़ी कंपनियों को शेयरिंग करनी चाहिए। 
 
 

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