पिछले कुछ वर्षों में फाइनेंशियल सेक्टर पर हैकर्स के अटैक बढ़े हैं। हैकर्स ऐसे अटैक भी कर रहे हैं जिनसे वे बैंकों और ट्रेडिंग हाउसेज के कंप्यूटर सिस्टम्स का इस्तेमाल क्रिप्टोकरेंसीज की माइनिंग के लिए करते हैं। इन्हें क्रिप्टोजैकिंग अटैक कहा जाता है। इनमें सायबर अपराधी मैलवेयर का इस्तेमाल कंप्यूटर नेटवर्क्स में सेंध लगाने के लिए करते हैं।
सायबर सिक्योरिटी फर्म SonicWall ने एक रिपोर्ट में बताया है कि इस वर्ष की पहली छमाही में पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में फाइनेंशियल कंपनियों पर
क्रिप्टोजैकिंग अटैक तिगुने से अधिक बढ़े हैं। इन अटैक्स में कंपनियों के कंप्यूटर नेटवर्क्स में मैलवेयर के जरिए पहुंचकर उस कंप्यूटिंग पावर का इस्तेमाल बिटकॉइन जैसी
क्रिप्टोकरेंसीज की माइनिंग के लिए किया जाता है। क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग के लिए महंगे इक्विपमेंट खरीदने पड़ते है और इसमें इलेक्ट्रिसिटी की अधिक खपत होती है। फाइनेंशियल सेक्टर के बाद रिटेल इंडस्ट्री ऐसे अटैक्स का दूसरा सबसे बड़ा निशाना है।
फाइनेंशियल सेक्टर की बहुत सी कंपनियों ने अपने एप्लिकेशंस को क्लाउड-बेस्ड सिस्टम पर शिफ्ट किया है। हैकर्स मैलवेयर को ऐसी कंपनियों के सर्वर्स और अन्य डिवाइसेज पर डिस्ट्रीब्यूट करते हैं या नेटवर्क्स में पहुंचने के लिए वाई-फाई को जरिया बनाया जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि क्रिप्टोजैकिंग के बढ़ने का एक बड़ा कारण बहुत से देशों में सरकारों की ओर से रैंसमवेयर अटैक्स पर शिकंजा कसना है। इस वजह से कुछ सायबर अपराधी अपने तरीके बदल रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, "रैंसमवेयर का जल्द पता लग जाता है और यह पीड़ित के साथ कम्युनिकेशन पर निर्भर करता है लेकिन क्रिप्टोजैकिंग में पीड़ित को अटैक की जानकारी नहीं होती।"
हालांकि, मौजूदा वर्ष की दूसरी तिमाही में क्रिप्टोजैकिंग अटैक्स की संख्या काफी घटी है। इसका कारण सीजनल भी हो सकता है क्योंकि ऐसे अटैक दूसरी और तीसरी तिमाही में कम हो जाते हैं और वर्ष की अंतिम तिमाही में इनमें तेजी आती है। पिछले कुछ महीनों में क्रिप्टो सेगमेंट से जुड़े हैकिंग के मामले भी बढ़े हैं। इससे इस सेगमेंट की बहुत सी फर्मों के साथ ही इनवेस्टर्स को भी बड़ा नुकसान हुआ है। इस वजह से बहुत से रेगुलेटर्स ने इस सेगमेंट की स्क्रूटनी बढ़ाने पर जोर दिया है। कुछ देशों में क्रिप्टोकरेंसीज के लिए कानून बनाने पर भी काम किया जा रहा है।
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