साल 2024 का समापन बेहद दिलचस्प खगोलीय घटना के साथ होने वाला है। इसका नाम ब्लैक मून (Black Moon) है। खगोल विज्ञान में ब्लैक मून जैसे शब्द को मान्यता नहीं मिली है, लेकिन हाल के कुछ वर्षों में इसने पॉपुलैरिटी बटोरी है शौकिया खगोलविदों और आसमान में होने वाली घटनाओं को ट्रैक करने वाले लोगों के बीच। एनडीटीवी की
रिपोर्ट के अनुसार, ब्लैक मून शब्द का इस्तेमाल तब किया जाता है जब एक कैलेंडर महीने में दूसरा नया चांद दिखे। आसान भाषा में समझाएं तो 30 नवंबर को अमावस्या थी, जिसके बाद 1 दिसंबर को नया चांद दिखना शुरू हुआ। अब आज 30 दिसंबर को भी अमावस्या है, जिसके बाद नया चांद 31 दिसंबर से नजर आएगा। इस तरह दिसंबर महीने में यह दूसरा नया चांद होगा।
US नेवल ऑब्जर्वेट्री के अनुसार, ब्लैक मून की घटना हर देश में अलग-अलग समय पर दिखेगी। भारत में इसे 31 दिसंबर की तड़के सुबह 3:57 बजे के आसपास देखा जा सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार, अमावस्या तब होती है जब सूर्य और चंद्रमा एक ही आकाशीय देशांतर (celestial longitude) पर होते हैं। इस दौरान चंद्रमा का चमकने वाला हिस्सा पृथ्वी से दूर हो जाता है और नग्न आंखों से दिखाई नहीं देता। क्योंकि चंद्रमा का चक्र औसतन 29.5 दिन का होता है, इसलिए कभी-कभी एक महीने में दो अमावस्याएं हो सकती हैं।
ब्लैक मून की घटना में चांद भले ना दिखाई दे, लेकिन इससे आकाश में अन्य ऑब्जेक्ट के दिखने के चांस बढ़ जाते हैं। घने अंधेरे वाले इलाके में जाकर तारों, ग्रहों और सुदूर आकाशगंगाओं को स्पॉट किया जा सकता है। अगर आपके पास अच्छा टेलीस्कोप है तो ब्लैक मून के दौरान आप बृहस्पति और शुक्र जैसे ग्रहों को देख सकते हो।
चंद्रमा से जुड़ी अन्य
खबरों में वैज्ञानिक चांद के लिए एक अलग टाइम जोन बनाने पर काम कर रहे हैं। अमेरिका ने अपनी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (Nasa) को चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों के लिए एक यूनिवर्सल स्टैंडर्ड टाइम (universal standard time) डेवलप करने की जिम्मेदारी दी है। प्रस्तावित कोऑर्डिनेटेड लूनार टाइम (LTC) का मकसद अंतरिक्ष अभियानों को मदद करना और एफिशिएंसी को बढ़ाना है। वाइट हाउस ने नासा को यह काम पूरा करने के लिए साल 2026 तक की डेडलाइन दी है।