ISRO Spadex Mission : भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो (ISRO) का
Spadex मिशन कामयाब हो गया। कई दिनों से देशवासी जिसका इंतजार कर रहे थे, वह गुड न्यूज गुरुवार सुबह आई। इसरो ने बताया कि उसने अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक दो स्पेसक्राफ्टों को आपस में जोड़ दिया है, जिसे स्पेस डॉकिंग कहा जाता है। ऐसा करने वाला भारत अब दुनिया का चौथा देश बन गया है। यह कामयाबी अबतक सिर्फ अमेरिका, रूस और चीन के नाम थी। स्पेस डॉकिंग क्या होती है और भारत को इससे क्या फायदा होगा? आइए जानते हैं।
ऐसे मिली कामयाबी
रिपोर्ट्स के अनुसार, इसरो को अंतरिक्ष में दो स्पेसक्राफ्टों को जोड़ने में कोई दिक्कत नहीं आई। दोनों स्पेसक्राफ्टों के बीच 15 मीटर की दूरी को तीन मीटर तक कम किया गया। फिर उन्हें रोका गया और आखिर में एक-दूसरे से जोड़ दिया गया।
क्या होती है स्पेस डॉकिंग
अंतरिक्ष में कोई भी स्पेसक्राफ्ट एक ऑर्बिट में घूमता है। स्पेस डॉकिंग की प्रक्रिया में दो स्पेसक्राफ्टों को एक ही ऑर्बिट में लाया जाता है। फिर उन्हें एक-दूसरे के करीब लाकर आपस में जोड़ दिया जाता है। उदाहरण के साथ इसे समझना है तो आपने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के बारे में सुना होगा, जो एक तरह से स्पेसक्राफ्ट ही है। जब भी वहां अंतरिक्ष यात्रियों की नई टीम जाती है तो एक स्पेसक्राफ्ट को धरती से लॉन्च करके आईएसएस के साथ डॉक किया जाता है, तभी एस्ट्रोनॉट्स वहां पहुंच पाते हैं।
स्पेस डॉकिंग से कौन से काम होते हैं
स्पेस डॉकिंग के जरिए एस्ट्रोनॉट्स को स्पेस में दूसरे स्पेसक्राफ्ट के साथ डॉक किया जाता है। उन तक सप्लाई पहुंचाने में भी स्पेस डॉकिंग का इस्तेमाल होता है। इसके अलावा खुद ISS को बनाते वक्त स्पेस डॉकिंग तकनीक अपनाई गई थी। चीन ने भी ऐसा करके ही अपना स्पेस स्टेशन बनाया है। दोनों देशों में स्पेस स्टेशनों के मॉड्यूलों को अलग-अलग वक्त में लॉन्च किया था और फिर अंतरिक्ष में उन्हें जोड़ा गया।
भारत को स्पेस डॉकिंग से क्या फायदा
भारत को स्पेस डॉकिंग का सबसे पहला फायदा चंद्रयान-4 मिशन में होगा। चंद्रयान-4 मिशन के तहत भारत चांद से सैंपल इकट्ठा करके उन्हें पृथ्वी तक लाना चाहता है। वैज्ञानिकों की योजना चांद पर एक स्पेसक्राफ्ट को उतारकर उसे एक रॉकेट के साथ डॉक करने की है, जो धरती पर चंद्रमा के सैंपल लेकर आएगा।