भारत का
आदित्य एल-1 (Aditya L1) मिशन सूर्य की ओर बढ़ रहा है, उससे पहले हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा ‘तारा' उग्र हो रहा है। एक के बाद एक पृथ्वी पर सौर तूफान आ रहे हैं। यह सब उस सौर चक्र का नतीजा है, जिससे हमारा सूर्य गुजर रहा है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (Nasa) पहले ही एक चेतावनी में बता चुकी है कि सूर्य में हो रही ये घटनाएं साल 2025 तक जारी रहेंगी। इस अवधि को सोलर मैक्सिमम (Solar Maximum) कहा गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार, पृथ्वी पर एक और सौर तूफान का खतरा है, क्योंकि सूर्य का जो हिस्सा पृथ्वी की ओर है, उस पर एक सोलर फ्लेयर (Solar Flare) भड़का है।
स्पेसवेदरलाइव की
रिपोर्ट में बताया गया है कि इस सोलर फ्लेयर की वजह से सोमवार को प्रशांत महासागर के ऊपर एक अस्थायी रेडियो ब्लैकआउट पैदा हो गया। यही नहीं, कुछ देर बाद एक और सोलर फ्लेयर की वजह से जापान, साउथ कोरिया और चीन के पूर्वी इलाकों में भी ऐसी ही स्थिति पैदा हो गई।
यह सब सूर्य में उभरे एक सनस्पॉट की वजह से है, जिसे AR3429 कहा जाता है। एक और सनस्पॉट जिसका नाम AR3423 है, वो भी पृथ्वी व अन्य ग्रहों के लिए मुसीबत बन सकता है। AR3423 का आकार बीते शुक्रवार के मुकाबले अबतक 1 लाख किलोमीटर तक बढ़ गया है।
जब सूर्य की चुंबकीय ऊर्जा रिलीज होती है, तो उससे निकलने वाली रोशनी और पार्टिकल्स से सौर फ्लेयर्स बनते हैं। हमारे सौर मंडल में ये फ्लेयर्स अबतक के सबसे शक्तिशाली विस्फोट हैं, जिनमें अरबों हाइड्रोजन बमों की तुलना में ऊर्जा रिलीज होती है। इनमें मौजूद एनर्जेटिक पार्टिकल्स प्रकाश की गति से अपना सफर तय कर लेते हैं।
सोलर फ्लेयर की तरह ही कोरोनल मास इजेक्शन भी पृथ्वी को मुसीबत में डालते हैं। ये सौर प्लाज्मा के बड़े बादल होते हैं। सौर विस्फोट के बाद ये बादल अंतरिक्ष में सूर्य के मैग्नेटिक फील्ड में फैल जाते हैं। अंतरिक्ष में घूमने की वजह से इनका विस्तार होता है और अक्सर यह कई लाख मील की दूरी तक पहुंच जाते हैं। कई बार तो यह ग्रहों के मैग्नेटिक फील्ड से टकरा जाते हैं। जब इनकी दिशा की पृथ्वी की ओर होती है, तो यह जियो मैग्नेटिक यानी भू-चुंबकीय गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं। इनकी वजह से सैटेलाइट्स में शॉर्ट सर्किट हो सकता है और पावर ग्रिड पर असर पड़ सकता है। इनका असर ज्यादा होने पर ये पृथ्वी की कक्षा में मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों को भी खतरे में डाल सकते हैं।