ऐसे ग्रह जो सूर्य के अलावा अन्य तारों की परिक्रमा करते हैं, एक्सोप्लैनेट कहलाते हैं। पहले एक्सोप्लैनेट की खोज साल 1992 में हुई थी। तब से खगोलविदों ने ऐसे लगभग 5,000 ग्रहों की खोज की है, जो दूसरे तारों की परिक्रमा कर रहे हैं। जब भी कोई नया एक्सोप्लैनेट खोजा जाता है, तब उसके बारे में बहुत कम जानकारी मिलती है। सिर्फ इतना ही कि एक एक्सोप्लैनेट मौजूद है और उसकी कुछ खूबियां हैं। बाकी सब एक रहस्य बना रहता है। इस इशू को सॉल्व करने के लिए स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के एस्ट्रोफिजिसिस्ट एक नई कॉन्सेप्चुअल इमेजिंग तकनीक पर काम कर रहे हैं। यह अबतक इस्तेमाल में आ रही सबसे मजबूत इमेजिंग तकनीक की तुलना में 1,000 गुना ज्यादा सटीक होगी।
ऐसा लगता है कि रिसर्चर्स ने यह पता लगा लिया है कि हमारे सौर मंडल के बाहर के ग्रहों को देखने के लिए सौर गुरुत्वाकर्षण लेंसिंग का इस्तेमाल कैसे किया जाए। वैज्ञानिक जिस तकनीक को डेवलप कर रहे हैं, वह मौजूदा तकनीक के मुकाबले ज्यादा एडवांस्ड हो सकती है।
एक्सोप्लैनेट से रोशनी को बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक सूर्य के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र का उपयोग कर सकते हैं। इसके लिए वह टेलिस्कोप, सूर्य और एक्सोप्लैनेट को एक सीध में करके ऐसा कर सकते हैं।
गुरुत्वाकर्षण लेंस, प्रकाश यानी लाइट को मोड़ सकता है और इसकी मदद से दूर स्थित चीजों की इमेज बनाई जा सकती है। रिसर्चर्स ने द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल के 2 मई के एडिशन में अपनी फाइंडिंग्स को
पब्लिश किया है। इस मेथड के लिए ज्यादा एडवांस्ड स्पेस ट्रैवल की जरूरत होगी। रिसर्चर्स के अनुसार इस कॉन्सेप्ट से दूसरी दुनिया के बारे में और क्या पता चलेगा, यह आने वाले वक्त में पता चलेगा।
गुरुत्वाकर्षण लेंसिंग के बारे में साल 1919 के आसपास सूर्य ग्रहण के दौरान एक प्रयोग के दौरान पता चला। यह पहला ऑब्जर्वेशनल सबूत था कि अल्बर्ट आइंस्टीन का सापेक्षता का सिद्धांत (theory of relativity) सही था। यह इस बात का सबूत था कि गुरुत्वाकर्षण, प्रकाश को मोड़ सकता है।
स्टैनफोर्ड में स्कूल ऑफ ह्यूमैनिटीज एंड साइंसेज में फिजिक्स के प्रोफेसर और कावली इंस्टिट्यूट फॉर पार्टिकल एस्ट्रोफिजिक्स एंड कॉस्मोलॉजी के डेप्युटी डायरेक्टर ब्रूस मैकिंटोश ने
कहा कि इस तकनीक का इस्तेमाल करके वो बाकी सितारों की परिक्रमा करने वाले ग्रहों की तस्वीरें लेने में सक्षम होना चाहते हैं। रिसर्चर्स को उम्मीद है कि वो 100 प्रकाश वर्ष दूर एक ग्रह की तस्वीर ले सकेंगे। यह इतनी प्रभावशाली हो सकती है, जितनी अपोलो 8 द्वारा ली गई पृथ्वी की तस्वीर है।