बढ़ता वैश्विक तापमान अलग-अलग तरीकों से हमें प्रभावित कर रहा है। सबसे ज्यादा असर आर्कटिक क्षेत्र में हुआ है, जहां मौजूद बर्फ तेजी से पिघल रही है। आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट जोकि
पृथ्वी की सतह या उसके नीचे एक जमी हुई लेयर होती है, वह भी चपेट में आई है। इसके पिघलने से एक छुपा हुआ खतरा सामने आ गया है! एनडीटीवी की
रिपोर्ट के अनुसार यह छुपा हुआ खतरा है मीथेन गैस के विशाल भंडार का, जोकि एक ग्रीनहाउस गैस है। बड़ी मात्रा में अगर मीथेन गैस का भंडार हमारे वायुमंडल में रिलीज हुआ, तो उसका क्या असर होगा, वैज्ञानिक भी नहीं जानते। यही वजह है कि उनकी चिंता बढ़ गई है।
रिपोर्ट कहती है कि यह आर्कटिक की जमीन पर टिक-टिक करता एक टाइम बॉम्ब है। इसके क्या नुकसान हो सकते हैं, वैज्ञानिक यह समझना चाह रहे हैं। आर्कटिक महासागर में खोज के दौरान वैज्ञानिकों को सतह के करीब एक गहरे मीथेन भंडार का पता चला, जो पृथ्वी के लिए शुभ संकेत नहीं है।
जिस जगह मीथेन का भंडार मिला है, वह नॉर्वेजियन द्वीपसमूह ‘स्वालबार्ड' (Svalbard) का हिस्सा है। रिपोर्ट के अनुसार, इस जगह का जियोलॉजिकल और ग्लेशियर इतिहास आर्कटिक के बाकी हिस्सों की तरह ही है। इसका मतबल है कि मीथेन का ऐसा भंडार आर्कटिक में बाकी जगहों पर भी हो सकता है।
इस स्टडी से जुड़े और स्वालबार्ड में यूनिवर्सिटी सेंटर के डॉ. थॉमस बिरचेल का कहना है कि मीथेन एक पावरफुल ग्रीनहाउस गैस है। मौजूदा वक्त में पर्माफ्रॉस्ट के नीचे से रिसाव कम है, लेकिन जैसे-जैसे ग्लेशियर पीछे खिसकेंगे और पर्माफ्रॉस्ट बढ़ेगा, हमें और ज्यादा जानकारी मिलेगी।
वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी ने वैज्ञानिकों को परेशानी में डाला हुआ है। तमाम
रिसर्च में यह सामने आया है कि अंटार्कटिका की बर्फ तेजी से पिघल रही है, जिससे दुनियाभर में समुद्र का स्तर बढ़ सकता है। रिसर्च यह भी कहती हैं कि समुद्र के स्तर में बढ़ाेतरी होने से उन शहरों को खतरा होगा, जो तटों के पास बसे हुए हैं।