पूरे सौर मंडल में मंगल ग्रह को पृथ्वी का सबसे नजदीकी साथी माना जाता है। इसका आकार, ढाल और संरचना पृथ्वी के समान है। यह भी माना जाता है कि मंगल की सतह पर पानी हुआ करता था। इसी वजह से यह विश्वास बरकरार है कि मंगल ग्रह पर एक दिन जीवन मुमकिन हो सकता है। मंगल ग्रह के बारे में ज्यादा जानकारी हासिल करने के लिए कई मिशन आने वाले साल में लॉन्च किए जाने हैं, जबकि कई मिशनों को लेकर योजना बनाई जा रही है। कुछ मिशन लॉन्च भी हो चुके हैं, जो इस लाल ग्रह पर जीवन से जुड़ी संभावनाओं के सबूत जुटा रहे हैं। इसी कोशिश में भारतीय वैज्ञानिकों के एक ग्रुप ने मंगल ग्रह की सतह पर हजारों ऐसे ट्रैक की खोज की है, जो गिरते हुए बोल्डरों द्वारा बनाए गए थे।
फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरी के वैज्ञानिकों को लगता है कि ये ट्रैक उन्हें मंगल ग्रह पर भूकंपीय गतिविधि को समझने में मदद कर सकते हैं। अहमदाबाद स्थित लैबोरेटरी में असिस्टेंट प्रोफेसर एस. विजयन के नेतृत्व में रिसर्चर्स ने साल 2006 से 2020 तक मंगल ग्रह की हाई-रेजॉलूशन इमेजेस की स्टडी की, ताकि हाल के गिरे बोल्डरों का पता लगाया जा सके।
यह रिसर्च लेटर ‘पीयर-रिव्यू जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च' में
प्रकाशित हुआ है। प्रोफेसर विजयन ने इसमें कहा है ‘हमने सभी इमेजेस को सर्च किया और पाया कि BFE (बोल्डर फॉल इजेक्टा) बड़ी संख्या में मौजूद हैं। यह बोल्डर काफी संख्या में गिर रहे हैं।' वैज्ञानिकों ने पाया कि बोल्डर ट्रैक को गायब होने में लगभग 2 से 4 मंगल वर्ष (4-8 पृथ्वी वर्ष) लगते हैं। वहीं, पृथ्वी पर भी ऐसे ट्रैक्स को ना के बराबर संरक्षित किया जाता है।
वैज्ञानिकों ने पाया कि मंगल ग्रह के सेर्बेरस फॉसे रीजन में ऐसे 30 फीसदी ट्रैक्स हैं। इसी जगह पर नवंबर 2018 में नासा का इनसाइट मिशन उतरा था। इनसाइट मिशन दुनिया का पहला मिशन है, जिसे मंगल ग्रह के आंतरिक भाग और संरचना का पता लगाने के लिए भेजा गया है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि जब कोई बोल्डर गिरता है, तो वह सतह पर टकराकर उछलता है। इससे सतह का कुछ मटीरियल बाहर निकल आता है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि उनकी रिसर्च से मंगल ग्रह पर इंसान के लैंड करने से पहले भूकंपीय गतिविधि को लेकर बेहतर समझ डेवलप होगी।