पृथ्वी हमारे सौर मंडल के बाकी ग्रहों से एकदम अलग है। यहां जीवन की मौजूदगी इसे सौर मंडल का सबसे अहम ग्रह बनाती है। इस जीवन को मुमकिन करता है पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र जो सौर हवाओं के खिलाफ एक सुरक्षा कवच की तरह काम करता है। लेकिन चीजें हमेशा से ऐसी नहीं थीं। एक समय था जब पृथ्वी का चुंबकीयमंडल (magnetosphere) पूरी तरह से खत्म होने की स्थिति में था। ऐसे हालात में जीवन पनपना मुमकिन ही नहीं था। फिर कैसे सबकुछ ठीक हुआ। वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च में यही पता लगाया है।
न्यू यॉर्क की
रोचेस्टर यूनिवर्सिटी में जियोफिजिक्स यानी भूभौतिकी के प्रोफेसर जॉन टार्डुनो के अनुसार, हमारे ग्रह पर जीवन की शुरुआत से पहले पृथ्वी का चुंबकीयमंडल पूरी तरह से ध्वस्त होने के कगार पर था। स्टडी से पता चला है कि 55 करोड़ साल पहले कैम्ब्रियन (Cambrian) काल की शुरुआत में हमारे ग्रह का चुंबकीय क्षेत्र पूरी तरह से खत्म होने वाला था। इसे दोबारा रीस्टोर करने में पृथ्वी को डेढ़ करोड़ साल लगे। स्टडी के मुताबिक पृथ्वी का इनर कोर विकसित होने से पहले इसका चुंबकीय क्षेत्र खत्म हो रहा था। जैसे-जैसे इनर कोर विकसित होता गया, चुंबकीय क्षेत्र भी रीजनरेट हो गया। अगर यह पुनर्जीवित नहीं होता तो आज पृथ्वी पर जीवन मुमकिन नहीं था।
यह स्टडी नेचर कम्युनिकेशंस में पब्लिश हुई है। स्टडी में पृथ्वी के इतिहास से जुड़ी कई रोचक बातें शेयर की गई हैं, जो बताती हैं कि हमारे ग्रह पर जीवन नहीं होता। यह भी बाकी ग्रहों की तरह ही एक निर्जन इलाका होता। स्टडी बताती है कि अगर हमारे ग्रह का चुंबकीय क्षेत्र भी खत्म हो गया होता, तो धरती का पानी सूख जाता। वैसे ही जैसे मंगल ग्रह का पानी सूख गया और वह एक बंजर ग्रह रह गया। रिसर्चर्स मानते हैं कि मंगल ग्रह पर भी कभी चुंबकीय क्षेत्र था। वह खत्म होने से मंगल ग्रह पूरी तरह से सूख गया और वीरान हो गया।
हालांकि वैज्ञानिक यह नहीं जान पाए हैं कि किन वजहों से पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र खत्म हुआ और आखिर कैसे रीस्टोर हुआ। स्टडी से पता चलता है कि शायद पृथ्वी की सतह से 28 हजार किलोमीटर नीचे पिघले हुए लोहे की वजह से इस ग्रह ने अपना चुंबकीय क्षेत्र फिर से पाया होगा। अगर ऐसा नहीं होता तो हमारा ग्रह सूर्य से आने वाली खतरनाक हवाओं के कारण सूख जाता। यहां बहुत रेडिएशन होता और पृथ्वी पर जीवन की मौजूदगी नहीं होती।
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