देश के कई हिस्सों में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की ओर से किए गए इंटरनेट शटडाउन से मौजूदा वर्ष की पहली छमाही में इकोनॉमी को लगभग 1.9 अरब डॉलर (लगभग 15,590 करोड़ रुपये) का नुकसान हुआ है। देश के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में पिछले कुछ महीने से जारी हिंसा के कारण इंटरनेट को बंद किया गया था। इससे पहले पंजाब में भी हिंसा की आशंका के कारण इंटरनेट पर रोक लगाई गई थी।
इंटरनेशनल नॉन-प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशन इंटरनेट सोसाइटी ने अपनी
रिपोर्ट 'नेटलॉस' में बताया है कि इंटरनेट शटडाउन से फॉरेन इनवेस्टमेंट के लगभग 11.8 करोड़ डॉलर का भी नुकसान हुआ है। इस शटडाउन के वित्तीय प्रभाव का आकलन करने के लिए बेरोजगारी दर में बदलाव, फॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट (FDI) के नुकसान और कार्यशील आयु वाली जनसंख्या जैसे तथ्यों को शामिल किया गया था। इस रिपोर्ट में कहा गया है, "सरकारों की अक्सर यह गलत धारणा होती है कि इंटरनेट शटडाउन से तनाव, गलत जानकारी को फैलने से रोका जा सकेगा या सायबर सुरक्षा को लेकर खतरे को कम किया सकेगा लेकिन शटडाउन से इकोनॉमी को भारी नुकसान होता है।"
इसके साथ ही रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में कानून व्यवस्था को बरकरार रखने के लिए शटडाउन का नियमित तौर पर इस्तेमाल करने से इस वर्ष शटडाउन का रिस्क 16 प्रतिशत का है। इंटरनेट शटडाउन से
ई-कॉमर्स को कामकाज रुक जाता है, बेरोजगारी में बढ़ोतरी होती है और कंपनियों के लिए वित्तीय और साख से जुड़े रिस्क होते हैं। इंटरनेट सोसाइटी ने कई वर्ष पहले यह स्पष्ट किया था कि वह शटडाउन के खिलाफ है। इसने सरकारों से शटडाउन से बचने का निवेदन किया था क्योंकि इससे इकोनॉमी, सिविल सोसाइटी और इंटरनेट से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर को नुकसान होता है। भारत में इंटरनेट शटडाउन के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। राज्यों में अक्सर किसी मुद्दे की वजह से तनाव और हिंसा को रोकने के लिए इंटरनेट पर रोक लगा दी जाती है। इससे बहुत से जरूरी कार्यों में भी लोगों को मुश्किल होती है।
इस बारे में इंटरनेट सोसाइटी के प्रेसिडेंट और चीफ एग्जिक्यूटिव, Andrew Sullivan ने कहा, "दुनिया भर में इंटरनेट शटडाउन बढ़ने से यह पता चल रहा है कि इंटरनेट को खुला, पहुंच में और सुरक्षित रखने की जरूरत को कमजोर करने के नकारात्मक परिणामों को सरकारें अनदेखा कर रही हैं।"