इंटरनेट पर अवैध, आपराधिक और बच्चों के उत्पीड़न से जुड़े मैटीरियल को रोकने के लिए केंद्र सरकार एक नए कानून पर कार्य कर रही है। डिजिटल इंडिया एक्ट के तहत इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स (ISP) और अन्य इंटरमीडियरीज उनके प्लेटफॉर्म पर आपत्तिजनक कंटेंट के लिए जवाबदेह होंगे।
केंद्रीय मंत्री Rajeev Chandrashekhar ने एक कॉन्फ्रेंस को संबोधन में
कहा कि मौजूदा इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट इस तरह की चुनौतियों से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं है। इस वजह से सरकार ने IT रूल्स बनाए थे और इंटरमीडियरीज को जिम्मेदार बनाने के लिए इन्हें पिछले वर्ष संशोधित किया गया था। इसके बाद डिजिटल टेक्नोलॉजी कानून लाने का प्रस्ताव है। उन्होंने कहा कि सरकार लोगों को सशक्त बनाने के एक जरिए के तौर पर इंटरनेट के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके साथ ही सरकार इसे सुरक्षित और विश्वसनीय बनाना चाहती है। इंटरमीडियरीज की यह जिम्मेदारी है कि वे सर्विस प्रोवाइडर्स होने के तौर पर गैर कानूनी और आपराधिक कंटेंट को हटाएं।
Chandrashekhar ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्राइवेसी के लिए जोर देना आपराधिकता का कारण नहीं बन सकता। उनका कहना था, "अगर कोई व्यक्ति अज्ञात भी है तो भी इंटरमीडियरीज को ऐसे कंटेंट को शुरू करने वाले का खुलासा करना होगा। इंटरनेट को लोगों के सशक्तिकरण के जरिए के तौर पर देखा गया था लेकिन यह आपराधिकता और गैर कानूनी गतिविधियों का गढ़ बन गया है।" इसके साथ ही उन्होंने कहा कि बच्चों का यौन उत्पीड़न करने वाला मैटीरियल इंटरनेट के बाहर से आता है और इससे कानून के अलग प्रावधानों के तहत निपटने की जरूरत है।
पिछले वर्ष के अंत में इंटरनेट सर्च इंजन गूगल को चलाने वाली Alphabet और कुछ अन्य कंपनियों पर 13 वर्ष से कम आयु के बच्चों की YouTube एक्टिविटी उनके अभिभावकों की सहमति के बिना ट्रैक करने के आरोप में अमेरिका में एक
मुकदमा दर्ज हुआ था। इन कंपनियों पर बच्चों की यूट्यूब एक्टिविटी ट्रैक कर उसका इस्तेमाल उन्हें विज्ञापन दिखाने के लिए करने का आरोप था। अमेरिकी कानून के तहत, फेडरल ट्रेड कमीशन और स्टेट अटॉर्नी जनरल के पास 13 वर्ष से कम आयु के बच्चों के बारे में व्यक्तिगत डेटा को ऑनलाइन एकत्र करने पर नियंत्रण का अधिकार है। इस मामले में आरोप लगाया गया था कि गूगल की ओर से किए गए डेटा कलेक्शन में कानून का उल्लंघन किया गया है।