बुधवार को हमारे द्वारा दी गई जानकारी की अब आधिकारिक पुष्टि हो चुकी है। व्हाट्सऐप और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नए 2000 रुपये के नोट में एक 'नियर-फील्ड जीपीएस' या एनजीसी चिप के जरिए नोट को ट्रैक करने की सभी ख़बरें झूठी हैं।
हमने समझाया था कि किस तरह नए 2000 रुपये के नोट में जिस तकनीक का दावा किया जा रहा है वो संभव नहीं है। व्हाट्सऐप पर फॉरवर्ड किए जाने वाले मैसेज में यह दावा किया गया था।आरबीआई फरवरी 2017 में 2000 रुपये के नोट जारी करेगी
भारत अपनी करेंसी में एक और नया नोट शामिल करने वाला है। रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) 2000 रुपये के नोट जारी करेगी। यह सबसे बड़ा नोट होगा। कुछ एक्सपर्ट का भी मानना है कि काले धन को रोकने के लिए बड़े नोटों पर रोक लगनी चाहिए।
2000 रुपये का नोट काले धन को बाहक निकालने के इरादे से डिज़ाइन किया गया है। माना जा रहा है कि इसमें नैनो टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाएगा और 2000 रुपये के हर नोट में एनजीसी (नैनो जीपीएस चिप) लगी होगी।
एनजीसी टेक्नोलॉजी काम कैसे करती है?
एनजीसी के अनोखे फ़ीचर के लिए किसी तरह के पावर सोर्स की जरूरत नहीं होती। यह सिर्फ एक सिग्नल रिफ्लेक्टर की तरह काम करता है। जब एक सैटेलाइट एनजीसी से लोकेशन जानने के लिए सिग्नल भेजता है तो एनजीसी उस लोकेशन से सिग्नल वापस भेजती है। इसके जरिए लोकेशन व करेंसी का सीरियल नंबर वापस सैटेलाइट को मिलता है। इस तरह एनजीसी से लैस करेंसी को आसानी से ट्रैक किया जा सकता है और जमीन से 120 मीटर अंदर होने पर भी इसका पता लगाया जा सकता है। एनजीसी को करेंसी नोट को नुकसान किए बिना ना तो हटाया जा सकता है और ना ही खत्म किया जा सकता है।
इससे काला धन बाहर कैसे आएगा?
अभी तक एनजीसी से लैस हर करेंसी को ट्रैक किया जा सकता है। सैटेलाइट के जरिए किसी स्थान पर रखे गए पूरे पैसे का पता लगाया जा सकता है। अगर बैंक या दूसरे वित्तीय संस्थानों के अलावा किसी और जगह लंबे समय तक बहुत ज्यादा धन रखा जाता है तो यह तकनीक इसका पता लगा लेगी। आगे की जांच के लिए इस सूचना को इनकम टैक्स विभाग को भेज दिया जाएगा।
भारत में काले धन के खात्मे की शुरुआत!
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