कई रिपोर्टों में हम यह पढ़ चुके हैं कि सूर्य में विभिन्न प्रकार की हलचलें देखने को मिल रही हैं। इनके चलते सोलर फ्लेयर्स, कोरोनल मास इजेक्शन आदि घटनाएं हो रही हैं। दरअसल, हमारा सूर्य अपने 11 साल के चक्र से गुजर रहा है। यह बहुत अधिक एक्टिव फेज में है। इसकी वजह से सौर फ्लेयर्स निकलने की बात कही जा रही है। रिपोर्टों में दावा किया गया है कि इसकी वजह से सैटेलाइट्स खराब हो रहे हैं और वापस पृथ्वी पर गिर सकते हैं।
द सन की एक
रिपोर्ट के अनुसार हर 11 साल में सूर्य पर चुंबकीय क्षेत्र फ्लिप हो जाता है। इसका मतलब है कि नॉर्थ और साउथ पोल्स बदल जाते हैं और सूर्य गलत बिहेव करने लगता है। सूर्य में जारी इस अस्थिरता की वजह से सौर फ्लेयर्स भड़कते हैं। यह सूर्य के रेडिएशन में होने वाला विस्फोट होता है। जब सूर्य की चुंबकीय ऊर्जा रिलीज होती है, तो उससे निकलने वाली रोशनी और पार्टिकल्स से सौर फ्लेयर्स बनते हैं। हमारे सौर मंडल में ये फ्लेयर्स अबतक के सबसे शक्तिशाली विस्फोट हैं, जिनमें अरबों हाइड्रोजन बमों की तुलना में ऊर्जा रिलीज होती है। इनमें मौजूद एनर्जेटिक पार्टिकल्स प्रकाश की गति से कोरोनल मास इजेक्शन भी होता है।
कोरोनल मास इजेक्शन या CME, सौर प्लाज्मा के बड़े बादल होते हैं। सौर विस्फोट के बाद ये बादल अंतरिक्ष में सूर्य के मैग्नेटिक फील्ड में फैल जाते हैं। अंतरिक्ष में घूमने की वजह से इनका विस्तार होता है और अक्सर यह कई लाख मील की दूरी तक पहुंच जाते हैं। कई बार तो यह ग्रहों के मैग्नेटिक फील्ड से टकरा जाते हैं। जब इनकी दिशा की पृथ्वी की ओर होती है, तो यह जियो मैग्नेटिक यानी भू-चुंबकीय गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं। इनकी वजह से सैटेलाइट्स में शॉर्ट सर्किट हो सकता है और पावर ग्रिड पर असर पड़ सकता है। इनका असर ज्यादा होने पर ये पृथ्वी की कक्षा में मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों को भी खतरे में डाल सकते हैं।
वर्तमान में चिंता की वजह सैटेलाइट्स ही हैं। चिंता इस बात की है कि सौर फ्लेयर्स से निकल रहीं लपटें सैटेलाइट्स को नुकसान पहुंचा रही हैं।
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी यानी ESA अपने स्वॉर्म स्पेसक्राफ्ट को लेकर चिंतित है, जो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को मापता है। बताया जाता है कि पिछले 5-6 साल में यह सैटेलाइट हर साल ढाई किलोमीटर सिंक हो रहा था। लेकिन पिछले साल दिसंबर से इसमें तेजी आई है और यह सालाना 20 किलोमीटर डूब रहा है या कहें पृथ्वी की ओर जा रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक वायुमंडल की ऊपरी लेयर में बहुत कुछ चल रहा है। यह सैटेलाइट वहां सोलर विंड का मुकाबला करता है। जाहिर तौर पर सूर्य से निकलने वाली हवाएं और फ्लेयर्स उपग्रहों तक पहुंच रहे हैं और उन्हें नुकसान पहुंचा रहे हैं।
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