नींद कम लेने से बढ़ सकता है मोटापा, नई स्टडी में हुआ खुलासा

यह रिसर्च अमेरिका के नेशनल हेल्थ एंड न्यूट्रिशन एग्जामिनेशन सर्वे में हिस्सा लेने वाले 18-59 वर्ष की आयु के 5,000 से अधिक व्यस्कों पर आधारित है

नींद कम लेने से बढ़ सकता है मोटापा, नई स्टडी में हुआ खुलासा

इस स्टडी में बताया गया है कि प्रति दिन सात से आठ घंटे की नींद लेना जरूरी होता है

ख़ास बातें
  • कम नींद लेना वजन बढ़ने का एक प्रमुख कारण है
  • प्रति दिन सात से आठ घंटे की नींद लेना जरूरी होता है
  • नींद में कमी से स्वास्थ्य से जुड़ी बहुत सी समस्याएं हो सकती हैं
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दुनिया भर में बड़ी संख्या में लोग मोटापे की समस्या से पीड़ित हैं। एक नई स्टडी में बताया गया है कि कम नींद लेना वजन बढ़ने का एक प्रमुख कारण है। इससे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों के आसपास Visceral फैट जमा हो जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। इस स्टडी में बताया गया है कि प्रति दिन सात से आठ घंटे की नींद लेना जरूरी होता है। 

Sleep Medicine जर्नल में प्रकाशित इस स्टडी में रिसर्चर्स ने कहा है कि अगर कोई व्यक्ति एक घंटे की कम नींद लेता है, तो विससेरल फैट लगभग 12 ग्राम बढ़ सकता है। इस स्टडी में रिसर्चर्स ने लिखा है, "नींद की अवधि व्यस्कों में विससेरल फैट जमा होने से नकारात्मक तौर पर जुड़ी है। प्रति दिन आठ घंटे से अधिक की नींद लेने का कुछ खास फायदा नहीं होता।" हालांकि, इसके साथ ही रिसर्चर्स का कहना है कि उनके निष्कर्षों की पुष्टि के लिए अधिक स्टडी करने की जरूरत है। यह रिसर्च अमेरिका के नेशनल हेल्थ एंड न्यूट्रिशन एग्जामिनेशन सर्वे में हिस्सा लेने वाले 18-59 वर्ष की आयु के 5,000 से अधिक व्यस्कों पर आधारित है। 

इसमें शामिल लोगों ने प्रति दिन लगभग सात घंटे की नींद ली थी। नींद में कमी से स्वास्थ्य से जुड़ी बहुत सी समस्याएं हो सकती हैं। इनमें मस्तिष्क पर अधिक जोर पड़ना और व्यवहार में बदलाव शामिल हैं। विससेरल फैट किसी व्यक्ति के पेट में होता है और यह धमनियों में जमा हो सकता है। इससे रक्तप्रवाह में फैटी एसिड लीक हो सकते हैं जिससे महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान होता है। विसरेसल फैट बहुत से महत्वपूर्ण अंगों के आसपास होता है। इनमें लीवर, पेट और आंतें शामिल हैं। यह सबक्युटेनियस फैट के समान नहीं है, जो त्वचा की सतह के ठीक नीचे होता है और सेल्युलाइट की तरह दिखता है। इसे खतरनाक नहीं माना जाता। सबक्युटेनियस फैट को आसानी से देखा जा सकता है, जबकि विससेरल फैट को देखना मुश्किल होता है। 

पिछले वर्ष प्रकाशित एक स्टडी में वैज्ञानिकों ने सर्दियों में जुकाम और खांसी के मामलों में बढ़ोतरी के बायलॉजिकल कारण की जानकारी दी थी। उनका कहना था कि सर्दियों के मौसम में चलने वाल ठंडी हवाओं के प्रति शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली यानी इम्‍युन सिस्‍टम मजबूती से नहीं लड़ पाता, खासकर नाक। द जर्नल ऑफ एलर्जी एंड क्लिनिकल इम्युनोलॉजी में पब्लिश हुई स्‍टडी में पता चला था कि रेस्‍पिरेटरी यानी श्‍वसन वायरस सबसे पहले नाक से संपर्क करते हैं। सर्दियों के मौसम में नाक ऐसे वायरस के साथ मजबूती से नहीं लड़ पाती। 
 
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आकाश आनंद

Gadgets 360 में आकाश आनंद डिप्टी न्यूज एडिटर हैं। उनके पास प्रमुख ...और भी

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