भारत में आज है वर्ष का सबसे छोटा दिन, ये है कारण....

विंटर सॉल्सटिस प्रति वर्ष तब आता है जब नॉर्दर्न हेमिस्फेयर सूर्य से दूर जाता है और इसके परिणाम में वर्ष की सबसे लंबी रात और सबसे छोटा दिन होता है

भारत में आज है वर्ष का सबसे छोटा दिन, ये है कारण....

इसके साथ ही सीजन में एक बड़ा बदलाव आता है

ख़ास बातें
  • इस अद्भुत घटना को विंटर सॉल्सटिस कहा जाता है
  • यह प्रत्येक वर्ष 21 या 22 दिसंबर को होती है
  • विंटर सॉल्सटिस नॉर्दर्न हेमिस्फेयर के सूर्य से दूर जाने पर होता है
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दुनिया के कई देशों में सर्दी की शुरुआत के साथ लंबे दिनों को अलविदा कहा जा रहा है। भारत में शुक्रवार को वर्ष की सबसे लंबी रात होगी। इस अद्भुत घटना को विंटर सॉल्सटिस कहा जाता है। यह प्रत्येक वर्ष 21 या 22 दिसंबर को होती है। इसके साथ ही सीजन में एक बड़ा बदलाव आता है। 

विंटर सॉल्सटिस प्रति वर्ष तब आता है जब नॉर्दर्न हेमिस्फेयर सूर्य से दूर जाता है और इसके परिणाम में वर्ष की सबसे लंबी रात और सबसे छोटा दिन होता है। धरती अपने एक्सिस पर 23.4 डिग्री झुकी हुई है। इस वजह से अगर धरती का पोल दिन के दौरान सूर्य की ओर या उससे दूर की दिशा में होता है तो सूर्य जिस दायरे में चलता है वह वर्ष के दौरान बढ़ता और घटता रहता है। नॉर्दर्न हेमिस्फेयर के न्यूनतम या सूर्य के आसमान में अपने सबसे निचले बिंदु पर होने पर विंटर सॉल्सिटिस होता है। इस वर्ष भारत में 22 दिसंबर को सबसे छोटा दिन है और सॉल्सिटिस 8.57 am पर होगा। 

वर्ष का सबसे छोटा दिन नॉर्दर्न हेमिस्फेयर में होगा और दिन की रोशनी 7 घंटे और 14 मिनट रहेगी। इस अद्भुत घटना को देखना का एक बेहतर तरीका सॉल्सिटिस के दिन सूर्योदय और सूर्यास्त को देखना है। विंटर सॉल्सिटिस से पूरी तरह विपरीत समर सॉल्सिटिस होता है जो जब नॉर्दर्न हेमिस्फेयर में अधिक घंटों तक दिन की रोशनी रहती है। 

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA ने यह जानकारी दी है कि सूर्य अपने 11 साल के सौर चक्र से गुजर रहा है और बहुत ज्‍यादा एक्टिव फेज में है। इस वजह से उसमें कोरोनल मास इजेक्‍शन (CME) और सोलर फ्लेयर (Solar Flare) जैसी घटनाएं हो रही हैं। ये घटनाएं 2025 तक जारी रह सकती हैं। कोरोनल मास इजेक्शन या CME, सौर प्लाज्मा के बड़े बादल होते हैं। सौर विस्फोट के बाद ये बादल अंतरिक्ष में सूर्य के मैग्‍नेटिक फील्‍ड में फैल जाते हैं। अंतरिक्ष में घूमने की वजह से इनका विस्‍तार होता है और अक्‍सर यह कई लाख मील की दूरी तक पहुंच जाते हैं। यह ग्रहों के मैग्‍नेटिक फील्‍ड से भी टकरा सकते हैं। जब इनकी दिशा की पृथ्‍वी की ओर होती है, तो यह जियो मैग्‍नेटिक यानी भू-चुंबकीय गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं। इनकी वजह से सैटेलाइट्स में शॉर्ट सर्किट हो सकता है और पावर ग्रिड पर भी असर पड़ सकता है। 
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आकाश आनंद

Gadgets 360 में आकाश आनंद डिप्टी न्यूज एडिटर हैं। उनके पास प्रमुख ...और भी

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