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चीनी वैज्ञानिकों ने पैदा किया हरी आंखों वाला बंदर! उंगलियां भी चमकती हैं!

इस बंदर को एक अभूतपूर्व प्रयोग के माध्यम से पैदा किया गया था। जिसमें जेनेटिक रूप से भिन्न एक ही प्रजाति के बंदरों की स्टेम कोशिकाओं का इस्तेमाल हुआ था।

चीनी वैज्ञानिकों ने पैदा किया हरी आंखों वाला बंदर! उंगलियां भी चमकती हैं!

Photo Credit: Cell

वैज्ञानिकों ने ऐसे बंदर को जन्म दिया है जिसकी आंखें हरी हैं। और उंगलियां बल्ब की तरह चमकती हैं!

ख़ास बातें
  • इसे वैज्ञानिकों ने किमेरिक (chimeric) कहा है यानि मिश्रित जीव।
  • यह दुनिया में अपनी तरह का पहला प्रयोग था।
  • विलुप्त होती प्रजाति को बचाने में यह प्रयोग चमत्कार कर सकता है।
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बंदरों को मनुष्य का सबसे करीबी माना जाता है क्योंकि इनके शरीर की बनावट लगभग मनुष्य के जैसी ही कही जाती है। थ्योरी ये भी कहती है मनुष्य का विकास बंदर के रूप से ही हुआ है। लेकिन चीन में वैज्ञानिकों ने बंदरों को लेकर कुछ अलग ही कर दिखाया है। यहां के वैज्ञानिकों ने ऐसे बंदर को जन्म दिया है जिसकी आंखें हरी हैं। और उंगलियां बल्ब की तरह चमकती हैं! आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला। 

चीनी वैज्ञानिकों ने DNA के गठजोड़ से ऐसा बंदर पैदा कर दिया है जिसकी आंखें गहरे हरे रंग की हैं। इसकी उंगलियों का टिप वाला हिस्सा चमकता है। CNN के मुताबिक, इसमें DNA के दो सेट इस्तेमाल किए गए हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्रयोग से मेडिकल रिसर्च में फायदा मिलेगा, साथ ही प्रजातियों को खत्म होने से बचाने में भी मदद मिलेगी। हालांकि यह बंदर 10 दिनों तक ही जिंदा रह पाया। इसे लैब में ही पैदा किया गया था। Cell नामक जर्नल में बताया गया है कि बंदर को पैदा करने की पूरी प्रक्रिया कैसी रही।  

इस बंदर को एक अभूतपूर्व प्रयोग के माध्यम से पैदा किया गया था। जिसमें जेनेटिक रूप से भिन्न एक ही प्रजाति के बंदरों की स्टेम कोशिकाओं का इस्तेमाल हुआ था। इसे वैज्ञानिकों ने किमेरिक (chimeric) कहा है यानि मिश्रित जीव। यह दुनिया में अपनी तरह का पहला प्रयोग था। वैज्ञानिक कह रहे हैं कि विलुप्त होती प्रजाति को बचाने में यह प्रयोग चमत्कार कर सकता है। इसमें दो प्रजातियों को मिलाकर एक नया जीव पैदा किया जा सकता है जिसमें कि एक ऐसी प्रजाति शामिल की जा सकती है जो विलुप्त होने के कगार पर हो। 

इससे पहले भी ऐसे प्रयोग किए जा चुके हैं। लेकिन बंदरों पर नहीं किए गए थे। ऐसा ही एक प्रयोग 1960 के दशक में किया गया था। उस वक्त यह चूहे पर किया गया था जब वैज्ञानिकों ने पहली बार किमेरिक माइस तैयार किया था। इसे बाद में बायोमेडिकल रिसर्च में इस्तेमाल किया गया। लेकिन विलुप्त होने के कगार पर आ चुकी प्रजाति को इससे बचाया जा सकता है जिस पर वैज्ञानिक अब काम कर रहे हैं। 
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हेमन्त कुमार

हेमन्त कुमार Gadgets 360 में सीनियर सब-एडिटर हैं और विभिन्न प्रकार के ...और भी

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