सौरमंडल में 8 ग्रह मौजूद हैं जो लगातार अपने तारे, जिसे सूर्य कहते हैं, का चक्कर लगा रहे हैं। क्या हो अगर सौरमंडल में 9वां ग्रह भी मिल जाए? या इन 8 ग्रहों के बीच में कोई 9वां ग्रह आ जाए? कुछ समय पहले तक हमारे सौरमंडल 9 ग्रह माने जाते थे। जिनमें 9वें ग्रह के रूप में प्लूटो को गिना जाता था। फिर 2005 में अंतरिक्ष विज्ञानी मार्क ब्राउन ने सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा रहे कुछ एस्ट्रॉयड्स की खोज की। इन एस्ट्रॉयड्स का आकार प्लूटो से भी बड़ा था। उसके बाद प्लूटो को 2006 में पूर्ण ग्रहों की गिनती से बाहर कर दिया और इसे ड्वार्फ प्लेनेट की कैटिगरी में डाल दिया गया। अब सौरमंडल में 8 ग्रह ही माने जाते हैं।
अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की एक महत्वाकांक्षी खोज
पृथ्वी जैसे एक और ग्रह का पता लगाने की है। कॉसमॉस मैग्जीन की
रिपोर्ट के अनुसार, अब एक एस्ट्रॉनॉमर ने
मंगल और
बृहस्पति ग्रह के बीच सुपर अर्थ यानि विशाल पृथ्वी की थ्योरी को पेश किया है। जो बताती है कि अगर हमारे सौरमंडल में सुपर अर्थ आ जाए तो वह सौरमंडल के संतुलन पर किस हद तक प्रभाव डाल सकती है। इस थ्योरी के मुताबिक अगर ऐसा होता है तो पृथ्वी पर जीवन खत्म हो सकता है! कैसे? वो भी जान लेते हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफॉर्निया, रीवरसाइड (UCR) में एक प्रयोग किया गया है। कम्प्यूटर की मदद से एक नया ग्रह मंगल और बृहस्पति के बीच बनाया गया है। चूंकि मंगल और बृहस्पति के बीच काफी फासला माना जाता है इसलिए यही जगह चुनी गई। लेकिन क्या इससे सौरमंडल के अन्य ग्रहों पर प्रभाव पड़ेगा?
UCR में प्रोफेसर स्टीफन केन का कहना है कि लौकिक ग्रहों में पृथ्वी सबसे बड़ा ग्रह है। जबकि नेप्च्यून सबसे छोटा गैसीय दैत्य है। लेकिन चौड़ाई में यह धरती से 4 गुना बड़ा है और 17 गुना भारी है। हमारे सौरमंडल के बाहर पृथ्वी से भी बड़े ग्रह हैं जो बनावट में इसके जैसे ही हैं। इन्हें सुपर अर्थ कहा जाता है। वहीं, मंगल और बृहस्पति के बीच बड़़ा गैप माना जाता है। अंतरिक्ष विज्ञानी कहते हैं कि इन दोनों ग्रहों के बीच एक और ग्रह हो सकता था। लेकिन अभी इनके बीच में बहुत सारे एस्ट्रॉयड मौजूद हैं जिनकी एक पूरी बेल्ट है।
केन और उनकी टीम ने इन दोनों के बीच एक ग्रह बनाकर यह जानने की कोशिश की कि अगर 9वां ग्रह मौजूद होता तो उसका धरती पर क्या असर होता। प्रयोग में उन्होंने पाया कि यह 9वां ग्रह सौरमंडल के बाकी सभी ग्रहों की कक्षा को प्रभावित कर सकता था। इसका प्रभाव सभी ग्रहों पर नकारात्मक रूप से पड़ने वाला था। प्रयोग के बाद वैज्ञानिकों ने पाया कि अच्छा हुआ कि इनके बीच में कोई और ग्रह मौजूद नहीं है। वह सौरमंडल को बहुत प्रभावित कर सकता है।
स्टडी में कहा गया है कि जुपिटर का मास यानि कि द्रव्यमान पृथ्वी से 318 गुना है। यहां तक कि अगर
सौरमंडल के सभी ग्रहों को मिला भी दिया जाए तो बृहस्पति सब पर भारी पड़ता है। इसलिए अगर 9वां ग्रह आकर बृहस्पति की कक्षा पर जरा सा भी असर डाल देता तो पूरे सौरमंडल पर उसका व्यापक प्रभाव पड़ना तय था। वैज्ञानिक कहते हैं कि ऐसा होता तो धरती पर जीवन खत्म हो सकता था। क्योंकि सुपर अर्थ नामक काल्पनिक ग्रह ने अगर पृथ्वी की कक्षा पर थोड़ा सा भी प्रभाव डाला होता तो यहां परिस्थितियां कुछ और होतीं जो जीवन के अनुकूल नहीं रह जातीं। यहां जीवन पूरी तरह से खत्म भी हो सकता था।
प्रोफेसर केन का कहना है कि छोटे आकार की कोई सुपर-अर्थ मंगल और बृहस्पति के बीच शायद कुछ हद तक स्टेबल रह सकती है। लेकिन अगर इससे ग्रह की स्थिति में जरा सा भी परिवर्तन आता है तो उसके परिणाम बुरे हो सकते हैं।