हाल ही में अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने एक एग्जोप्लेनेट (ऐसा ग्रह जो सौरमंडल के बाहर किसी तारे का चक्कर लगाता हो) या सुपरअर्थ (super-Earth) की खोज की है जो हमारे प्लेनेट यानि पृथ्वी से 4 गुणा बड़ा है। खगोलविदों ने इसे Ross 508 b नाम दिया है। यह भी पृथ्वी की तरह एक सूर्य जैसे तारे के गिर्द चक्कर लगाता है जिसका नाम Ross 508 बताया गया है। यह 36.5 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है इसलिए नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता है। वैज्ञानिकों ने पाया कि यह Ross 508 के हैबिटेबल जोन (तारे के समीप बने रहने योग्य जगह) में है। इस स्टडी को नाम दिया गया है- "M4.5 डवार्फ रॉस 508 के अंतरूनी छोर के पास हैबिटेबल जोन में घूमती सुपर अर्थ।"
स्टडी को पब्लिकेशंस ऑफ द एस्ट्रॉनोमिकल सोसाइटी ऑफ जापान नाम के जर्नल में प्रकाशित करने के लिए स्वीकार किया गया है। Ross 508 b प्लेनेट तारे के पास उस दूरी पर घूमता है जिससे कि ग्रह पर पानी के बनने योग्य तापमान बना रहे। इससे पता चलता है कि रॉस 508 बी अपने तारे के हैबिटेबल जोन में है।
हालांकि, केवल हैबिटेबल जोन में चक्कर लगाने का ये मतलब नहीं है कि ग्रह पर जीवन होगा। यूं तो, मंगल भी सूर्य के हैबिटेबल जोन में है लेकिन वहां पर फिर भी जीवन नहीं पाया जाता है। इसके बारे में अनुमान लगाया गया है कि यह गैसीय ग्रह न होकर रेतीला या चट्टानीय ग्रह होगा।
शोधकर्ताओं ने इस ग्रह को एक धीमी रोशनी वाले तारे के समीप स्पॉट किया है, जिसे ढूंढने के लिए उन्होंने हवाई में जापान की नेशनल एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्जर्वेटरी के सुबारू टेलीस्कोप (Subaru Telescope) का इस्तेमाल किया। चूंकि यह धीमी रोशनी वाला तारा सूरज से छोटा है इसलिए Ross 508 b इसके चारों ओर एक चक्कर को 10.75 दिन में पूरा कर लेता है। इसके अलावा, Ross 508 तारे की रोशनी कम होने के कारण Ross 508 b पर पृथ्वी की तुलना में 1.4 गुणा ज्यादा सोलर रेडिएशन पहुंचती है।
Ross 508 हमारे सूर्य के केवल 18 प्रतिशत भाग जितना बड़ा है। इसी कारण यह सबसे मंद और सबसे छोटा तारा साबित होता है जिसके पास अपना एक कक्षीय संसार है। इसे रेडिएल वैलोसिटी के माध्यम से खोजा गया है। रेडिएल वैलोसिटी या वॉब्बल या डॉपलर तरीका एक्जोप्लेनेट्स को खोजने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह तकनीक ऐसे ग्रहों को खोजने में ज्यादा कारगर है जो गैसीय अवस्था में हैं, ऐसी दूरी जहां पर पानी का बने रहना संभव नहीं है।
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