पृथ्वी से बाहर जीवन की तलाश में
वैज्ञानिकों की टीम दिन-रात एक किए हुए है। विभिन्न देशों की एजेंसियों के मिशन मंगल ग्रह से लेकर चंद्रमा, बृहस्पति जैसे ग्रहों को टटोल रहे हैं। सबसे ज्यादा खोज मंगल ग्रह (Mars) पर हो रही है। वहां अतीत में पानी की मौजूदगी के सबूत भी मिले हैं। लेकिन जीवन की संभावनाओं का पता अबतक नहीं चल पाया है। क्या इस दिशा में AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कुछ क्रांति ला सकता है। एक नई मेथड से इसकी उम्मीद जगी है।
स्पेसडॉटकॉम की
रिपोर्ट के अनुसार, स्पेस एजेंसियां जिन स्पेसक्राफ्ट को दूसरे ग्रहों पर भेज रही हैं, उनमें लगे सेंसर वहां जीवन की मौजूदगी बताने वाले मॉलिक्यूल्स का पता लगाने की क्षमता रखते हैं। हालांकि ये मॉलिक्यूल्स वक्त के साथ खराब हो जाते हैं। ऐसे में मौजूदा तकनीक कई बार नाकाफी साबित होती है।
रिपोर्ट कहती है कि अब AI पर बेस्ड एक नई मेथड को डेवलप किया गया है। यह मॉलिक्यूल पैटर्न में छोटे से अंतर को भी भांप सकती है। लाखों साल पुराने सैंपलों को भी यह अच्छे से जांच सकती है और 90 फीसदी एक्यूरेसी के साथ रिजल्ट देने में सक्षम है।
फ्यूचर में इस एआई सिस्टम को अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले रोबोटों पर लगाया जा सकता है। इस सिस्टम को चांद, मंगल ग्रह और बृहस्पति के चंद्रमा यूरोपा पर जाने वाले स्पेसक्राफ्ट में भी जोड़ा जा सकता है। इस मेथड से जुड़ा रिसर्च पेपर नेशनल अकेडमी और साइंसेज में पब्लिश हुआ है।
रिसर्चर्स की टीम ने करीब 134 सैंपलों के साथ मशीन लर्निंग एल्गोरिदम को ट्रेनिंग दी। टीम ने 59 जैविक (biotic) और 75 अजैविक (abiotic) सैंपलों का इस्तेमाल किया। एआई मेथड से दांतों, हड्डियों, इंसान के बाल, कोयला, तेल आदि से बने जीवाश्म टुकड़ों (fossilized fragments) में प्रिजर्व किए गए जैविक नमूनों की पहचान कर ली गई।
इंस्ट्रूमेंट ने लैब में बनाए गए अजैविक सैंपलों को भी पहचान लिया। इस एआई मेथड को ऑस्ट्रेलिया में चल रही एक रिसर्च में इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर वहां यह सफलतापूर्वक काम कर जाती है, तो भविष्य में अंतरिक्ष में इसे यूज करने की उम्मीद बढ़ जाएगी।