NordPass की सालाना रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि दुनिया और भारत में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला पासवर्ड अब भी "123456" है। साइबरसिक्योरिटी एक्सपर्ट इसे सबसे बड़ा जोखिम बताते हैं।
Photo Credit: NordPass
हर साल टेक कंपनियां और साइबरसिक्योरिटी एक्सपर्ट्स यूजर्स को मजबूत पासवर्ड रखने की सलाह देते हैं, लेकिन लोग आज भी “आसान याद रहने वाले” पासवर्ड ही पसंद करते हैं। यही वजह है कि NordPass की लेटेस्ट Top 200 Most Common Passwords रिपोर्ट ने एक बार फिर दिखा दिया कि इंटरनेट पर पासवर्ड सुरक्षा की हालत अभी भी चिंताजनक है। कंपनी ने पिछले एक साल में हुए डेटा ब्रीचेज और डार्क वेब रिपोजिटरी में लीक हुई एंट्रीज को एनालाइज किया और दुनिया भर के सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले पासवर्ड की लिस्ट जारी की। रिपोर्ट में यह बात साफ दिखाई देती है कि जनरेशन चाहे जूमर हो, मिलेनियल हो या साइलेंट हो, कमजोर और कॉमन पासवर्ड की आदतों में ज्यादा बदलाव नहीं आया है।
NordPass और NordStellar ने साइबरसिक्योरिटी रिसर्चर्स के साथ मिलकर सितंबर 2024 से सितंबर 2025 के बीच लीक हुए पासवर्ड का डेटा एनालाइस किया। इसमें किसी भी व्यक्ति का प्राइवेट डेटा खरीदा या इकट्ठा नहीं किया गया। रिपोर्ट दिखाती है कि दुनिया के कई देशों में पासवर्ड पैटर्न पर संस्कृति और भाषा का भी असर होता है, जैसे भारतीय नाम, सरनेम या सिंपल नंबर पैटर्न वाले पासवर्ड लगातार टॉप पर दिखाई देते हैं।
ग्लोबल रैंकिंग में इस साल भी नंबर 1 पासवर्ड वही है - "123456", जिसे 21 मिलियन से ज्यादा लोगों ने इस्तेमाल किया। दूसरे नंबर पर है "admin" और तीसरे पर "12345678।" साफ है कि लोग सुविधा के आगे सुरक्षा को अभी भी महत्व नहीं दे रहे।
भारत की बात करें, तो यहां भी डेटा चौंकाने वाला ही है। भारत में भी वही पैटर्न रिपीट हुआ है, जिसमें पहले नंबर पर "123456" ही निकला, जिसे लगभग 19 लाख बार पाया गया। उसके बाद "Pass@123", "admin" और "12345678" जैसे पैटर्न आते हैं। यह दिखाता है कि भारत में लोग पासवर्ड बनाते समय या तो सिंपल नंबर सीक्वेंस चुनते हैं या एक ही पैटर्न में कैपिटल लेटर और स्पेशल कैरेक्टर जोड़ देते हैं।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अलग-अलग देशों के यूजर्स अपने नाम और सरनेम भी पासवर्ड में डालते हैं, जैसे "kristian123", "rahul99" या "suresh@123।" ये पैटर्न सांस्कृतिक रूप से बहुत आम हैं, लेकिन सुरक्षा के लिहाज से बेहद कमजोर साबित होते हैं।
इसी रिपोर्ट में NordPass ने एक दिलचस्प मिथ तोड़ा, यह मान लेना कि नई पीढ़ी 'डिजिटल नेटिव' है और इसलिए उन्हें साइबरसिक्योरिटी की समझ खुद-ब-खुद होती है, ये गलत है, क्योंकि डेटा उल्टा दिखाता है। 18 साल के यूजर और 80 साल के यूजर के पासवर्ड पैटर्न में लगभग कोई फर्क नहीं है। Gen Z हो, मिलेनियल्स हों या साइलेंट जेनरेशन, सबकी टॉप लिस्ट में वही पुराने "12345", "123456" और "password" जैसे बेहद आसान पासवर्ड मिले। इससे साफ होता है कि तकनीक भले बदल गई हो, लेकिन पासवर्ड आदतें पीढ़ी दर पीढ़ी वही बनी हुई हैं।
Gen Z यानी 1997 से 2007 के बीच पैदा हुए यूजर्स को इंटरनेट की सबसे जागरूक पीढ़ी समझा जाता है। लेकिन उनके कॉमन पासवर्ड देखें तो यह धारणा फौरन टूट जाती है। "12345", "123456", "12345678" और "password" उनकी टॉप लिस्ट में हैं। यानी जल्दी याद रहने वाला पासवर्ड अभी भी सुरक्षा से ज्यादा जरूरी माना जा रहा है।
मिलेनियल्स, जिन्होंने इंटरनेट के साथ Gen Z से पहले कदम रखा था, उनकी लिस्ट भी खास बेहतर नहीं है। "123456", "1234qwer", "123456789" और "12345" ने उनकी टॉप एंट्रीज में जगह बनाई। यानी जिस पीढ़ी को टेक-सेवी कहा जाता है, वह भी पासवर्ड के मामले में ढीली ही निकली।
Gen X यानी 1965–1980 के यूजर्स में पहली बार नंबर पैटर्न के साथ कुछ नाम भी दिखते हैं, जैसे "veronica" और "lorena", लेकिन "123456" और "12345" यहां भी लीडिंग है। यानी बीच की पीढ़ी भी सुरक्षित पासवर्ड अपनाने से कतराती है।
बेबी बूमर्स, यानी 1946 से 1964 में पैदा हुए लोगों की पासवर्ड लिस्ट भी काफी प्रिडिक्टेबल है। "maria", "contraseña" (स्पैनिश में "पासवर्ड") और "123456" जैसे पासवर्ड साबित करते हैं कि बड़ी उम्र वाले यूजर्स भी आसान और भावनात्मक शब्दों पर भरोसा ज्यादा करते हैं।
साइलेंट जेनरेशन, यानी सबसे उम्रदराज जनरेशन भी "12345", "123456", "susana", "marta" और "margarita" जैसे सीधे-सादे पासवर्ड ही चुनती है। यानी पासवर्ड बनाते समय सुविधा की आदत उम्र के साथ खत्म नहीं होती, बल्कि वही बनी रहती है।
साइबर एक्सपर्ट्स कहते हैं कि इतने आम पासवर्ड आसानी से क्रैक हो जाते हैं, क्योंकि हैकर्स ब्रूट-फोर्स या डिक्शनरी अटैक में इन्हीं पॉपुलर पासवर्ड से शुरुआत करते हैं। ऐसे में रिपोर्ट यूजर्स को साफ चेतावनी देती है कि पासवर्ड को और मजबूत बनाना अब सिर्फ सलाह नहीं, बल्कि एक जरूरी आदत बन चुकी है।
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