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वीडियो गेम्स खेलना बच्चों के लिए नुकसानदायक या फायदेमंद? लेटेस्ट स्टडी आपको कर देगी हैरान

एक बच्चा जो घंटों बिताने के मामले में टॉप 17 प्रतिशत में था, उसने अपने आईक्यू को दो साल में औसत बच्चे की तुलना में लगभग 2.5 अंक अधिक बढ़ाया।

वीडियो गेम्स खेलना बच्चों के लिए नुकसानदायक या फायदेमंद? लेटेस्ट स्टडी आपको कर देगी हैरान

औसत बच्चे दिन में चार घंटे और टॉप 25 प्रतिशत छह घंटे गेमिंग करते हैं

ख़ास बातें
  • 10 से 12 वर्ष की आयु के करीब 5000 बच्चों का इंटरव्यू और टेस्ट लिया गया
  • स्टडी कहती है कि इस मामले में जीन बेहद मायने रखते हैं
  • औसत बच्चे दिन में चार घंटे और टॉप 25 प्रतिशत छह घंटे गेमिंग करते हैं
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कई माता-पिता अपने बच्चों को घंटों तक वीडियो गेम खेलने से रोकते हैं और कुछ को यह भी चिंता होती है कि गेमिंग उनके बच्चों के दिमाग को सही ढंग से विकसित नहीं होने देते। यह वास्तव में एक ऐसा विषय है, जिस पर वैज्ञानिक वर्षों से स्टडी कर रहे हैं। इसे लेकर एक न्यूज़ और रिसर्च रिपोर्ट एनालिसिस प्लेटफॉर्म ने भी स्टडी की है और बताया है कि वीडियो गेमिंग बच्चों की समझ को बढ़ाती है। 

The Conversation की नई स्टडी में जांचा गया कि वीडियो गेम बच्चों के दिमाग को कैसे प्रभावित करते हैं। 10 से 12 वर्ष की आयु के 5,000 से अधिक बच्चों का इंटरव्यू और टेस्ट लिया गया, जिसके नतीजे वीडियो गेमिंग के खिलाफ माता-पिता के लिए आश्चर्यजनक होंगे। स्टडी में बच्चों से पूछा गया कि वे दिन में कितने घंटे सोशल मीडिया पर, वीडियो या टीवी देखने और वीडियो गेम खेलने में बिताते हैं। उनका जवाब था 'बहुत घंटे'। रिपोर्ट कहती है कि औसतन, बच्चे दिन में ढाई घंटे ऑनलाइन वीडियो या टीवी कार्यक्रम देखने में, आधे घंटे ऑनलाइन सोशल प्लेटफॉर्म्स पर और एक घंटे वीडियो गेम खेलने में बिताते हैं।

कुल मिलाकर, औसत बच्चे दिन में चार घंटे और टॉप 25 प्रतिशत छह घंटे गेमिंग करते हैं, जो बच्चों के खाली समय का एक बहुत बड़ा हिस्सा है। रिपोर्ट बताती है कि बच्चों के विकासशील दिमाग के लिए गेमिंग फायदेमंद और नुकसानदायक दोनों साबित हो सकती है। और ये उस परिणाम पर निर्भर हो सकते हैं जिसे आप देख रहे हैं। हमारे अध्ययन के लिए, हम विशेष रूप से बुद्धि पर स्क्रीन टाइम के प्रभाव में रुचि रखते थे - प्रभावी ढंग से सीखने, तर्कसंगत रूप से सोचने, जटिल विचारों को समझने और नई परिस्थितियों के अनुकूल होने की क्षमता।

रिपोर्ट में बताया गया है कि इस स्टडी के लिए पांच कामों को लेकर एक इंटेलिजेंस इंडेक्स बनाया गया, जिनमें से दो पढ़ने की समझ और शब्दावली पर, एक ध्यान और एग्जीक्यूटिव फंक्शन पर, एक विजुअल-स्पेशियल प्रोसेसिंग (जैसे दिमाग में ऑब्जेक्ट का रोटेशन) का आकलन करने पर, और एक कई ट्रायल्स पर सीखने की क्षमता पर।

स्टडी कहती है कि इस मामले में जीन बेहद मायने रखते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ जीन्स के साथ पैदा हुए बच्चों की दिलचस्पी टीवी देखने में अधिक हो सकती है, लेकिन सीखने में समस्या हो सकती है। स्टडी में लिया गया डेटा सैंपल लिंग, नस्ल, जातीयता और सामाजिक आर्थिक स्थिति के आधार पर बांटा गया था। स्टडी में पाया गया कि जब रिसर्चर्स ने पहली बार दस साल की उम्र में बच्चों से पूछा कि वे कितना खेलते हैं, तो वीडियो देखना और ऑनलाइन सोशल करना दोनों ही औसत से कम बुद्धि से जुड़े थे। इस बीच, गेमिंग को बुद्धि से बिल्कुल भी नहीं जोड़ा गया था। स्क्रीन टाइम के ये नतीजे ज्यादातर पिछले रिसर्च के अनुरूप हैं। लेकिन बाद की तारीख में पाया गया कि गेमिंग का बुद्धि पर सकारात्मक और सार्थक प्रभाव पड़ा।

जबकि दस साल में अधिक वीडियो गेम खेलने वाले बच्चे औसतन उन बच्चों की तुलना में अधिक बुद्धिमान नहीं थे, जो गेमिंग नहीं करते थे। उदाहरण के लिए, एक बच्चा जो घंटों बिताने के मामले में टॉप 17 प्रतिशत में था, उसने अपने आईक्यू को दो साल में औसत बच्चे की तुलना में लगभग 2.5 अंक अधिक बढ़ाया।

अन्य दो प्रकार की स्क्रीन एक्टिविटी की बात करें, तो सोशल मीडिया ने दो साल बाद इंटेलिजेंस में बदलाव को प्रभावित नहीं किया। कई घंटों तक इंस्टाग्राम करने और मैसेज करने से बच्चों की बुद्धि नहीं बढ़ी, लेकिन यह हानिकारक भी नहीं था। अंत में, टीवी और ऑनलाइन वीडियो देखने से एक बच्चों पर पॉजेटिव प्रभाव दिखा।

हालांकि, स्टडी में कहा गया है कि इस रिसर्च को पूर्ण रूप से सही नहीं समझना चाहिए।
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