देश में सैटेलाइट इंटरनेट सर्विसेज की जल्द शुरुआत हो सकती है। हालांकि, इससे पहले Reliance Jio और Bharti Airtel जैसे टेलीकॉम कंपनियों ने कहा है कि अगर सैटेलाइट स्पेक्ट्रम का प्राइस कम रखा जाता है तो इससे उनके बिजनेस को नुकसान होगा। इससे बिलिनेयर Elon Musk की Starlink जैसी सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस उपलब्ध कराने वाली कंपनियों को फायदा हो सकता है।
पिछले महीने टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) ने सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स के लिए उनके वार्षिक रेवेन्यू का चार प्रतिशत केंद्र सरकार को भुगतान करने का प्रपोजल दिया था। स्टारलिंक ने सैटेलाइट स्पेक्ट्रम का ऑक्शन नहीं करने के लिए लॉबीइंग की थी। स्टारलिंक का कहना था कि इसके लिए इंटरनेशनल ट्रेंड के अनुसार लाइसेंस दिया जाना चाहिए। इस
कंपनी की दलील थी कि यह एक नेचुरल रिसोर्स है जिसकी कम्युनिकेशन से जुड़ी कंपनियों को शेयरिंग करनी चाहिए।
Reuters की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने पिछले महीने के अंत में टेलीकॉम मिनिस्ट्री को लिखे एक पत्र में सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की प्राइसिंग से जुड़े इस प्रपोजल की समीक्षा करने का मांग की है। इस पत्र में कहा गया है कि सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स के लिए प्राइस की तुलना में देश की
टेलीकॉम कंपनियां स्पेक्ट्रम के लिए सरकार को लगभग 21 प्रतिशत अधिक भुगतान करती हैं। Reuters ने इस पत्र को देखा है। इसमें कहा गया है, "स्पेक्ट्रम का प्रति MHz प्राइस दोनों प्रकार की सर्विसेज के लिए समान या तुलना किया जा सकने वाला होना चाहिए।"
इस बारे में रिलायंस जियो और एयरटेल ने टिप्पणी के लिए Reuters की ओर से भेजे गए निवेदन का उत्तर नहीं दिया। स्टारलिंक इसे लेकर टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं थी। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने Reuters को बताया कि टेलीकॉम मिनिस्ट्री प्राइसिंग से जुड़े TRAI के सुझावों की समीक्षा कर रही है। उनका कहना था कि टेलीकॉम इंडस्ट्री की ओर से पहले भी इस प्रकार की आशंकाएं उठाई जा चुकी हैं। पिछले कुछ वर्षों में रिलायंस जियो और अन्य टेलीकॉम कंपनियों ने टेलीकॉम, डेटा और ब्रॉडबैंड सर्विस के लिए ऑक्शन में 5G स्पेक्ट्रम हासिल करने के लिए लगभग 20 अरब डॉलर खर्च किए हैं। रिलायंस जियो ने सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के लिए ऑक्शन की मांग की थी।