आपने लाइट पल्यूशन या प्रकाश प्रदूषण के बारे में सुना है? अवांछित, गैरजरूरी और आर्टिफिशियल लाइटिंग के बेतहाशा इस्तेमाल से दुनिया में प्रकाश प्रदूषण बढ़ा है। अब एक स्टडी में बताया गया है कि प्रकाश प्रदूषण रात में आसमान को चमका रहा है। इसकी वजह से तारे ‘गायब' हो रहे हैं, यानी जिन तारों को पहले आंखों से देखा जा सकता था, वह अब आसमान में चमक बढ़ने की वजह से दिखने बंद हो गए हैं। स्टडी में बताया गया है कि 18 साल पहले एक आम इंसान या स्टार गेजर रात के समय आकाश में 250 रोशनी के छीटों या ऑब्जेक्ट्स को देख पाता था। अब यह संख्या सिमटकर 100 पर आ गई है। यह आंकड़े दुनियाभर के हजारों सिटिजन साइंटिस्टों की जानकारी से जुटाए गए हैं।
तारों का दिखना कम क्यों हो गया?
स्टडी में इसकी वजह प्रकाश प्रदूषण में बढ़ोतरी को बताया गया है, जिसकी बड़ा हिस्सा शहरों में चमकने वाली लाइटिंग से आता है। स्टडी में कहा गया है कि शहरों की लाइटें हर साल आसमान की चमक में 9.6 फीसदी की बढ़ोतरी कर रही हैं।
स्टडी कहती है कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में आसमान अलग-अलग दर से चमक रहा है। स्टडी में पाया गया कि यूरोप में आसमान के चमकने की दर 6.5 फीसदी प्रति वर्ष है, जबकि उत्तरी अमेरिका में प्रकाश प्रदूषण के कारण आसमान की चमक हर साल 10.4 फीसदी बढ़ जाती है। स्टडी कहती है कि शहरी वातावरण में जिस तेजी से तारे दिखाई देना बंद हो रहे हैं, वह बेहद नाटकीय है।
इस स्टडी को GFZ जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंसेस, रुहर-यूनिवर्सिटेट बोचुम और यूएस नेशनल साइंस फाउंडेशन के NOIRLab के रिसर्चर्स ने मिलकर पूरा किया। इसका नाम "ग्लोब एट नाइट" सिटीजन साइंस प्रोजेक्ट है। साल 2011 से 2022 तक इस स्टडी को अंजाम दिया गया। यह स्टडी
जर्नल साइंस में पब्लिश हुई है।
स्टडी कहती है कि प्रकाश प्रदूषण में बढ़ोतरी चिंता की बात है। इससे ना सिर्फ इंसान बल्कि उन क्षेत्राें में रहने वाले जानवर भी प्रभावित हो रहे हैं। रिसर्चर्स ने बताया है कि आकाश रात में कितना चमकता है, इसे पहले कभी मापा नहीं गया। हालांकि सैटेलाइट से मिले आंकड़ों के आधार पर कुछ अनुमान मौजूद हैं। स्टडी का एक पहलू यह भी है कि रिसर्चर्स के पास विकासशील देशों का पर्याप्त डेटा नहीं था, जहां यह बदलाव और तेजी से हो रहा है।