एक हालिया स्टडी के अनुसार हमारे ब्रह्मांड में कई एक्सोप्लैनेट (exoplanets) हैं, जिनमें धूल के कणों के बादल मौजूद हैं यानी इन्हें रेत के बादल भी कह सकते हैं। गौरतलब है कि ऐसे ग्रह जो सूर्य के अलावा अन्य तारों की परिक्रमा करते हैं, एक्सोप्लैनेट कहलाते हैं। अपनी सर्विस से रिटायर हो चुके स्पिट्जर टेलीस्कोप (Spitzer telescope) के वर्षों से जुटाए गए डेटा के रिव्यू में इन असामान्य बादलों की विशेषता का पता चलता है। वैज्ञानिकों के अनुसार जैसे बृहस्पति के वायुमंडल में अमोनिया और अमोनियम हाइड्रोसल्फाइड से बने पीले-रंग के बादल हैं। उसी तरह अन्य ग्रहों में सिलिकेट से बने बादल होते हैं। सिलिकेट, चट्टान बनाने वाले मिनिरल्स की फैमिली से है जो पृथ्वी के क्रस्ट का 90 फीसदी से ज्यादा हिस्सा बनाते हैं।
वैज्ञानिकों की यह स्टडी रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी के मंथली नोटिस में पब्लिश हुई है। इसमें वैज्ञानिकों ने उन परिस्थितियों को समझने की कोशिश की है, जिसकी वजह से माइक्रोस्कोपिक धूल के इन बादलों का निर्माण होता है और उनमें रेत की मौजूदगी होती है।
वैज्ञानिकों को भूरे रंग के बौने तारों की परिक्रमा करने वाले कुछ ग्रहों के वातावरण में सिलिकेट बादलों के संकेत मिले। साल 2003 में लॉन्च हुए स्पिट्जर टेलीस्कोप ने अपने ऑपरेशन के पहले 6 साल में इनका डेटा जुटाया था। पता चला कि सिनिकेट बादलों की वजह तापमान है। इसी वजह से इन एक्सोप्लैनेट के वातावरण में बादल बनते हैं। विशेषज्ञों ने पाया कि जिन ग्रहों पर सिलिकेट के बादल बनते हैं, उन सभी का तापमान लगभग 1,000 डिग्री सेल्सियस और 1,700 डिग्री सेल्सियस के बीच था। यानी यह सिलिकेट बादलों के निर्माण के लिए आदर्श तापमान है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि रेत के इन बादलों में कोई मुख्य घटक होता होगा, जो बादलों के बनने में भूमिका निभाता होगा। यह पानी, अमोनिया, सल्फर या नमक कुछ भी हो सकता है। अध्ययन के निष्कर्षों के आधार पर वैज्ञानिकों को लगता है कि बृहस्पति के वायुमंडल में भी ऐसे गहरे बादल मौजूद है, जहां तापमान बहुत ज्यादा है।
गौरतलब है कि पृथ्वी के बाहर जीवन की बात आती है, तो एक्सोप्लैनेटों पर भी वैज्ञानिकों की नजर जाती है। हाल ही में एक अध्ययन से पता चला है कि विभिन्न परिस्थितियों में भी कई अरबों वर्षों तक लिक्विड वॉटर, एक्सोप्लैनेट की सतह पर मौजूद रह सकता है। बर्न यूनिवर्सिटी, ज्यूरिख यूनिवर्सिटी और नेशनल सेंटर ऑफ कॉम्पीटेंस इन रिसर्च (NCCR) के रिसर्चर्स ने समझाया है कि रहने योग्य एक्सोप्लैनेट की खोज के लिए इस दृष्टिकोण को समझना बहुत जरूरी है।