अमेरिकी एयरोस्पेस की दौड़ में कई प्राइवेट कंपनियां एक-दूसरे से मुकाबला कर रही हैं। इनमें बोइंग (Boeing) भी शामिल है, जो एक मानव रहित अंतरिक्ष यात्री कैप्सूल की टेस्टिंग करने और स्पेस सेक्टर में अपनी प्रतिष्ठा को बेहतर बनाने में लगी है। हालांकि कंपनी का एयरोजेट रॉकेटडाइन के साथ टकराव सामने आया है, जो उसके स्पेसक्राफ्ट के लिए एक प्रमुख सप्लायर है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, मिशन बोइंग एक सीधी चुनौती है एलन मस्क की स्पेसएक्स के लिए। इसके जरिए बोइंग खुद को एक प्रतिद्वंदी के तौर पर स्थापित करना चाहती है।
इसी क्रम में 19 मई को CST-100 स्टारलाइनर स्पेसक्राफ्ट को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के लिए एटलस 5 रॉकेट के ऊपर लॉन्च किया जाना है। बोइंग, नासा को यह दिखाना चाहती है कि उसका स्पेसक्राफ्ट, अंतरिक्ष यात्रियों के लिए सुरक्षित है।
बोइंग और एयरोजेट के बीच स्टारलाइनर के प्रोपल्शन सिस्टम को लेकर टकराव हुआ था। इस वजह से पिछले साल जुलाई में एक टेस्ट फ्लाइट को कैंसल करना पड़ा। इसके लिए दोनों कंपनियों ने एक-दूसरे को जिम्मेदार बताया। स्पेस सेक्टर की दुनिया में बोइंग पहले से हाथ-पैर मार रही है। ऐसे में एयरोजेट से टकराव ने उसकी चुनौती को और बढ़ाया है। इस प्रोजेक्ट में कंपनी की कॉस्ट लगभग 4,598 करोड़ रुपये रही है।
पिछले साल की तरह इस बार मिशन में कोई परेशानी ना आए, इसके लिए बोइंग खुद प्रोपल्शन सिस्टम के वॉल्व के डिजाइन में छोटे-मोटे बदलाव कर रही है। ऐसे 13 ईंधन वॉल्व जो अंतरिक्ष में स्टारलाइनर को चलाने में मदद करते हैं, वह पिछले साल काम नहीं कर रहे थे और मिशन को टालना पड़ा था।
इन तकनीकी नाकामियों ने वैसे भी बोइंग को स्पेसएक्स से पीछे कर दिया है। स्पेसएक्स अपने ड्रैगन कैप्सूल में नासा के लिए कई अंतरिक्ष यात्रियों को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में पहुंचा चुकी है। वैसे नासा को उम्मीद है कि बोइंग इस मुश्किल को पार कर लेगी। हालांकि बोइंग के मिशन में देरी की वजह से स्पेसएक्स के हाथ तीन और मिशन लग गए हैं।
पिछले साल प्रस्तावित मिशन में देरी के लिए बोइंग और एयरोजेट के अपने-अपने तर्क हैं। दोनों कंपनियां वॉल्व के काम नहीं करने के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदारी बताती हैं। हालांकि बोइंग और नासा इसके पीछे लगभग एक जैसी वजह मानती हैं। इसके मुताबिक, प्रोपलेंट, एल्यूमीनियम मटीरियल और मॉइश्चर की वजह से हुए एक कैमिकल रिएक्शन ने वॉल्वों को जाम कर दिया था।