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वैज्ञानिकों ने की चांद की मिट्टी पर की पौधे उगाने की कोशिश, नतीजे देख रह गए हैरान!

बीज 3 दिन के अंदर ही अंकुरित हो गए। एक हफ्ते के बाद इनमें से पौधों को हटा दिया गया, केवल एक को छोड़कर। बचे हुए एक पौधे को 20 तक बढ़ने दिया गया और फिर जेनेटिक अध्य्यन के लिए इसे काट लिया गया।

वैज्ञानिकों ने की चांद की मिट्टी पर की पौधे उगाने की कोशिश, नतीजे देख रह गए हैरान!

नासा ने इस प्रयोग के लिए केवल 12 ग्राम मिट्टी ही दी थी जो कि Apollo 11, Apollo 12 और Apollo 17 मिशन के दौरान इकट्ठा की गई थी।

ख़ास बातें
  • बीज 3 दिन के अंदर ही अंकुरित हो गए
  • पौधे को 20 तक बढ़ने दिया गया
  • चांद की मिट्टी कॉस्मिक किरणों और सौर वायु के लम्बे एक्पोजर में रहती है
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आपने चंद्रमा पर पौधे उगाने के बारे में सोचा है? वैज्ञानिकों ने चांद पर तो नहीं, लेकिन इससे आई मिट्टी पर बीज उगाने में सफलता हासिल कर ली है। चांद से मिट्टी के ये नमूने 1969 और 1972 में नासा के मिशनों के दौरान इकट्ठे किए गए थे, जिन पर वैज्ञानिकों ने पौधे उगाए हैं। धरती के पौधों का दूसरी दुनिया की मिट्टी में उग पाना मानवता के लिए बहुत बड़ी सफलता है। इससे संभावना पैदा होती है कि धरती पर पनपने वाले पौधों को दूसरे ग्रहों पर भी उगाया जा सकता है। 

शोधकर्ताओं ने बताया कि उन्होंने अरबिडोप्सिस थालियाना (Arabidopsis thaliana) नाम के एक कम फूल वाले खरपतवार के बीज 12 छोटे कंटेनरों में लगाए। ये कंटेनर बहुत छोटे हैं जो केवल मनुष्य की उंगली की टिप के बराबर हैं। इनमें केवल 1 ग्राम चांद की मिट्टी डाली गई, जिसे सही अर्थों में लूनर रिगोलिथ (lunar regolith) कहा जाता है। यह मिट्टी नुकीले कणों और ऑर्गेनिक मैटिरियल की कमी के चलते धरती की मिट्टी से बहुत अलग है, इसलिए वैज्ञानिकों को शंका थी कि शायद पौधे न उगें। 

यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा में हॉर्टीकल्चर साइंसेज के प्रोफेसर एना लिसा पॉल ने कहा, "जब हमने पहली बार देखा कि सभी सैम्प्लों पर हरे रंग के अंकुर फूट आए हैं, तो हमारी सांसें जैसे थम सी गईं।" उन्होंने कहा, "पौधे चांद की मिट्टी पर उग सकते हैं। ये साधारण सा वाक्य अपने आप में बहुत बड़ा है और भविष्य के चांद और मंगल के लिए दरवाजे खोलता है।"

हर एक बीज इस मिट्टी में अंकुरित हुआ और बाहर से देखने पर चांद की मिट्टी में अंकुरण के शुरुआती चरणों में कोई अंतर देखने को नहीं मिल पा रहा था। यह मिट्टी ज्यादातर चूरा की गई बेसाल्ट चट्टानों से बनी है। बीजों को धरती पर फटने वाले ज्वालामुखी की राख में भी उगाया गया क्योंकि इसमें भी वैसे ही खनिज तत्व और वैसे ही आकार के कण पाए जाते हैं। इसके माध्यम से वैज्ञानिक दोनों तरह की मिट्टी की तुलना करना चाहते थे। 

ज्वालामुखीय मिट्टी में उगे पौधों की अपेक्षा चांद की मिट्टी में उगाए गए पौधे उम्मीद के मुताबिक ज्यादा विकास नहीं कर पाए। ये बहुत धीरे बढ़े और आकार में बहुत छोटे थे। इनकी जड़ें काफी रूखी थीं और पत्तियां छोटी थीं, जिनका रंग लाल और काला सा था। यह बता रहा था कि इनका स्वस्थ विकास नहीं हो पाया। इन्होंने वैसे ही रिएक्ट किया जैसे आम पौधे नमक, धातु और ऑक्सीडेशन के प्रति करते हैं। 

पॉल ने कहा कि भले ही पौधे चांद की मिट्टी में उग पाए लेकिन मेटाबॉलिक दृष्टिकोण से इन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ी। लेकिन शोधकर्ताओं के लिए इनका उग पाना ही बहुत बड़ी बात थी। उन्होंने आगे कहा कि पौधों के उग पाने से ही यह संभावना मजबूत हो जाती है कि हम चांद पर जाकर अपना भोजन उगा सकते हैं, हवा को साफ कर सकते हैं और पौधों की मदद से पानी को रिसाइकल भी कर सकते हैं, जैसा कि पृथ्वी पर भी करते हैं। 

नासा ने इस प्रयोग के लिए केवल 12 ग्राम मिट्टी ही दी थी जो कि Apollo 11, Apollo 12 और Apollo 17 मिशन के दौरान इकट्ठा की गई थी। शोधकर्ताओं ने लगभग दर्जन कंटेनरों में 3-4 बीज डाले और उनमें एक पोषक सॉल्यूशन भी डाला। उसके बाद इन्हें लैब में 23 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखा गया जिनके ऊपर गुलाबी छटा वाली रोशनी की भी व्यवस्था की गई थी। 

बीज 3 दिन के अंदर ही अंकुरित हो गए। एक हफ्ते के बाद इनमें से पौधों को हटा दिया गया, केवल एक को छोड़कर। बचे हुए एक पौधे को 20 तक बढ़ने दिया गया और फिर जेनेटिक अध्य्यन के लिए इसे काट लिया गया। वैज्ञानिकों ने पाया कि चांद की मिट्टी, जो कि कॉस्मिक किरणों और सौर वायु के लम्बे एक्पोजर में रहती है, पौधों के विकास के लिए बहुत अधिक अच्छी नहीं है। 
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